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चाणक्यसूत्राणि
होनी संभव है । भार्य या अनायकी कोई शारीरिक टकसाल नहीं है जैसा कि कुछ आधुनिक भ्रान्त लेखकोंका मन्तव्य है ।
पाठान्तर - उपकारो नास्तिकानादरेषु कर्तव्यः ।
यह पाठ मद्दत्वद्दीन है ।
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{ अनार्यकी अकृतज्ञताका कारण ) प्रत्युपकारभयादनार्यः शत्रुर्भवति ।। ४०० ।।
कलुषित हृदय अकृतज्ञ व्यक्ति किसीसे उपकृत होनेपर उसका प्रत्युपकार न करने की दुरभिसंधिसे उसका शत्रु होजाता है ।
विवरण- अकृतज्ञ अनार्य पुरुष दूसरे भद्र पुरुषोंसे टपकृत होनेपर, प्रत्युपकार करना पड़नेके डर से वैसा प्रसंग थानेसे पहले ही उनका शत्रु बनकर कृतज्ञता के मानवोचित बन्धनको तोड फेंकने में ही अपनी चतुराई समझा करता है।
उपकर्ताको विपत्तिको दूर करना या उसके किसी काम में सहायक बनना प्रत्युपकार कहता है । अनार्यकी स्थिति दूध पिलानेवालोंको भी काटनेवाले सांपोंकी-सी होती है। वह अपने स्वभावसे किसीका प्रत्युपकार न करनेके लिये विवश होता है ।
संसारका यह प्रायः अनुभव है कि सत्पुरुषोंके शत्रु साधारणतया वे ही होते हैं जो कभी न कभी उनकी उदारता से उपकृत होचुके होते हैं । कुछ लोगों का यह भी कटु अनुभव है कि उपकार करना शत्रु उत्पन्न करलेना होजाता है । इस अनुभव के आधारपर यह धारणा बनचुकी है कि उपकारक लोगोंको उपकार के बदले में शत्रुता ही मिला करती है। फिर भी सत्पुरुष शत्रुभयसे अपना स्वभाव नहीं त्याग देते । वे अपने स्वाभावानुसार सबसे सज्जनताका बर्ताव करके ही मनुष्यको अमुक मित्र है और अमुक शत्रु इस रूप में पहचानकर मित्रको भवना और शत्रुको त्याग देते हैं ।