________________
राजाके पारिवारिकोंका सत्कार
३४१
( राजाके पारिवारिकों का सत्कार )
कुटुम्बिनो भेतव्यम् ॥ ३७६ ॥
राजाले कौटुम्बिक संबन्ध रखनेवालोंका द्वेष्य नहीं बनना चाहिये ।
विवरण - राजपरिवार के सदस्योंकी अवज्ञा करना वास्तव में राजाकी ही अवज्ञा है । राजाके कुटुम्बियों को भी राजतुल्य शिष्टाचार पानेका अधिकार होता है। उन्हें शिष्टाचार से वंचित करना राजरोपका कारण बनसकता है । प्रजाका राजाके साथ जो संबन्ध है, वही संबन्ध राजाके कुटुम्बियों के साथ भी कुछ अंशोंतक वांछनीय है। प्रजाके मनमें राजा या उसके कुटुम्बियोंके असंतोष या संदेहका पात्र बनने की ओरसे सतर्कता सदा ही रहनी चाहिये | मन में प्रेमपात्र के प्रेमसे वंचित न होनेकी सतर्कता रहना ही प्रेमको परिभाषा है। यहां पर भीतिका अर्थ शत्रुभाव न होकर सब समय सतर्क रहना ही है ।
अथवा -- कुटुम्बी अपने पारिवारिकों में से किसी पर रोबोत्पादक अन्याय न होने देनेके लिये निरन्तर सावधान रहे ।
पाठान्तर-- कुटुम्बिना भेतव्यम् ।
कुटुम्बियों को पालन करनेवाला व्यक्ति अपने उत्तरदायित्व पालन करने के मार्ग निको भयावह मानकर उनसे भात्मरक्षा करता रहे और समाजका सौमनस्य पानेमें प्रयत्नशील रहे ।
जिस मनुष्यकी कर्तव्यनिष्ठापर परिवार के अनेक व्यक्तियोंका भरणपोषण निर्भर होता है, उसके कर्तव्य मार्ग में पगपगपर विघ्नोंकी संभावना रहती है । यदि कुटुम्बियोंका नेता अपनी असतर्कता के कारण उन विघ्नोंको दूर करने में असमर्थ होजाता है तो कुटुम्बके सब व्यक्तियोंमें अनिवार्यरूपसे अशान्ति आदर्शहीनता, अनैतिकता आदि मानसिक व्याधियें उत्पन्न होजाती हैं। अपने विपुल परिवारको नैतिक बन्धनमें बांधकर सन्मार्गपर रखने के लिये असामान्य सावधानता की आवश्यकता है ।