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चाणक्यसूत्राणि
जाग्रत रहेगी तथा जब राजा ऐसा बनकर रहना अपना कर्तव्य मानेंगे तब हो समाज अपने हितचिन्तक राष्ट्रसेवकको राज्यभार सौंपकर उसीके शासन में रहनेको अपना धर्म स्वीकार करनेके लिये उद्यत होसकेगा । भारतकी परम्परागत राजभक्ति राजसिंहासनारूढ व्यक्तिकी भक्ति नहीं है । भारतकी राजभक्ति तो अपनी मातृभूमिकी ही भक्ति है ।
राजा प्रजाहितका उत्तरदायी है । वह प्रजाके कल्याणके लिये कुपथगायिका पथरोध करके समाजमें शान्तिरक्षाका उत्तरदायी है। राजशक्ति प्रजाकी सदिच्छा से प्रजाशक्ति से ही बनती है। राजा प्रजाहितका सामूहिक प्रतीक होनेसे दण्डनीतिका प्रधानपुरुष है । इस अर्थ में राजद्रोह तो प्रजाद्रोह तथा प्रजाद्रोह राजद्रोह होजाता है । राजद्रोहसे बचने में ही प्रजाका हित है । प्रजाहितकारी कर्तव्य करना ही राजासे अद्रोह या राजभक्ति है राज्यशासन न रहने पर प्रजार्मे मात्स्यन्याय चल पड़ता है। हां, यदि राजा अपना कर्तव्य छोड़कर अकर्तव्य करनेपर उतर आये तो राष्ट्रकल्याणकी दृष्टिसे निडर होकर राजाका विरोध करना प्रजाका व्यक्तिगत नहीं किन्तु सामूहिक पवित्र कर्तव्य हो जाता है
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पाठान्तर
राज्ञो भेतव्यं सर्वकालम |
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( राजा राष्ट्रभर से धर्मपालन करानेवाला जीवित देवता ) न राज्ञः परं दैवतम् || ३७२ ।।
राजासे श्रेष्ठ देव कोई नहीं है ।
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विवरण - प्रजारंजक कर्तव्यपरायण राजासे श्रेष्ठ पूजनीय देव कोई नहीं है । अन्य दव न दीखनेवाले देव हैं। राजा प्रत्यक्ष दीखनेवाला देवता है । त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि राजा समस्त प्रजाहितका मूर्तिमान प्रतिनिधि तथा उत्तरदायी है । प्रजा पाप करे तो उसे दण्डका भय दिखाकर पापसे रोककर प्रजामें सदाचारको परम्परा प्रदाह्नित करना अन्य सब देवोंसे अधिक राजाका ही उत्तरदायित्व है । राजाके इस उत्तरदायित्व में सहायक बननेके लिये अपने उपार्जनमें से राजभाग देते रहकर उसे सुपुष्ट