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अज्ञान और चांचल्य स्त्रीस्वभाव
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(अज्ञान और चांचल्य स्त्रीखभाव ) न समाधिः स्त्रीषु लोकज्ञता च ॥ ३६१॥ स्त्रीजातिमें स्थिरता तथा लोकचरित्रका ज्ञान नहीं होता। विवरण- समाज में पुरुषके प्रबल होनेसे स्त्रीजातिको कूपमण्डूक बनाये रखनेका उत्तरदायित्व पुरुष समाजका ही है । इसलिये यह माक्षेप मी वास्तव में पुरुषसमाजका ही कलंक है । म्यवहारकुशलता सामाजिक व्यवहार करते रहनेसे प्राप्त होती है । क्योंकि स्त्रीजातिको सामाजिक व्यव. हार करनेका अवसर नहीं दिया जा रहा है इस कारण व्यवहारकुशलतामें जिस स्थिरबुद्धिता तथा जिस लोकचरित्रके परिचयकी मावश्यकता होती है स्त्रीजातिको उसे प्राप्त करनेका समवसर नहीं मिलता । यह सूत्र समाजका ध्यान इसी वास्तविकताकी ओर खींचना चाहता है। यह माक्षेप वास्तव में स्त्रीमात्रके चरित्रपर नहीं है किन्तु अविकसित स्त्रीस्वभावपर ही है। विकासका अवसर मिलनेपर स्त्रीजाति पुरुषसे कमी न्यून नहीं रह सकती । इस न्यूनताको दूर करना समाजका कर्तव्य है। समाजकी इस न्यूनताने समाजको अर्धाङ्गी पक्षाघात रोगका रोगी बना रखा है। राटको इस रोगसे मुक्त करनेका कर्तव्य सुझादेना ही इस सूत्रका स्वीकारणीय अर्थ होसकता है । स्त्रीजातिके अविकसित मास्तिक बने रहने से सन्ततिका अप्रौढ अज्ञ भन्याव. हारिक होना अनिवार्य है।
चलितवृत्त, धुमक्कड या साधारण स्त्रियों में न तो अपनी चरित्ररक्षाके सम्बन्धमें स्थिरबुद्धिता, अचांचल्य या कर्तव्यनिष्ठारूपी समाधि होती है
और न वे सामाजिक कतव्यों तथा उत्तरदायियोंसे परिचित होती हैं। इसलिये राष्ट्रको किन्हीं भी गोपनीय बातों के सम्बन्ध में इमी स्त्रियोपर विश्वास करना उनकी गोपनीयताको ही नष्ट कर डालना है। राज्यसंस्थाका सफल संचालन करना चाहने वाले राज्याधिकारी इस प्रकारकी उच्छृखल स्त्रियों के सम्बन्धमें पूरी सावधानी करते और किसी प्रकार की गुप्तचर स्त्री के
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