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विश्वविजयी मानव
विवरण - हस्तगत साधनको ही साधन मानना चाहिये । अनागत साधनों को अपनी श्रद्धा नहीं देनी चाहिये । अनिश्चित साधनका भरोसा करके हस्तगत साधनका उपयोग न करना कर्तव्यभ्रष्टता है । मनिश्चित अप्राप्त साधनों का भरोसा करना वृथा है । कल कुछ मिल सकेगा या नहीं यह अनागत होने से अनिश्चित है । हाथकी वस्तु समक्ष उपस्थित है । उपस्थित स्वल्प भी श्रेष्ठ है । अनुपस्थित बहुतका भी कोई व्यवहारिक मूल्य नहीं है | ( अनैतिकता कर्तव्यभ्रष्टताकी उत्पादक ) अतिप्रसंगो दोषमुत्पादयति ॥ ३४९ ॥
३०९
किसी भी कार्य में अनैतिकताका आघुसना उस कार्यके उद्देइयको विनष्ट करनेवाली कर्तव्यभ्रष्टता है ।
विवरण - विषय में अतिप्रसक्ति अर्थात् उनका अवैध सेवन अनिष्ट त्पन्न करता है । इससे शारीरिक ऐन्द्रियक तथा भौतिक अनिष्ट होते हैं । इससे मनुष्यका तेजम्बी भाग नष्ट होजाता तथा वह निस्तेज होकर उपेक्षित पददलित होकर परनिर्भर जीवन काटनेके लिये विवश होजाता है ।
अथवा किसीके साथ अनुचित घनिष्ठता बढाना अनिष्ट उत्पन्न करनेवाला होता है।
( विश्वविजयी मानव )
सर्व जयत्यक्रोधः || ३५० ॥
क्रोधहीन ( रागहीन विनीत सुशील ) व्यक्ति विश्वविजयी बन जाता है ।
विवरण - चित्तचांचल्य ही क्रोध है । बुद्धिको स्थिर रखना विजेता के लिये अनिवार्य रूप से आवश्यक है । स्पष्ट शब्दोंमें क्रोधपर विजय पालना ही विश्वविजय है । बुद्धिकी जो स्थिरता है वही तो विजय है । बुद्धिकी ज अस्थिरता है वही तो पराजय है । संग्राम में जिसकी बुद्धि, अन्ततक स्थिर