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भार्या कैसी हो ?
विवरण - सत्य ही स्वामी तथा नृत्य दोनोंका प्रभु है । भृत्यका सत्यानुकूल बनाना ही आदर्श, सत्यनिष्ठ, सफल स्वामीके अनुकूल बनना है ।
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नृत्यको सुयोग्य स्वामीकी ही नीति अपनानी चाहिये तथा उसीके दिनमें अपना हित मानना चाहिये । भृत्यकी नीति के सत्यनिष्ठ स्वामी के अनुकूल न होने पर भूत्यका का अपना भी अनिष्ट तथा स्वामीके कार्यकी भी हानि होती है । भृत्यको स्वामीकी आज्ञा पालनी चाहिये तथा उसीके अनुकूल आचरण करना चाहिये । राष्ट्रसेवक स्वामीको राष्ट्रसेवापरायण भृत्योंसे ही काम लेना चाहिये । राष्ट्रसेवापरायणता ही राजकीय नृत्योंकी योग्यता है । योग्यताकी इस कसौटी पर कस कर ही नवीन भृत्योंकी सेवा 1 स्वीकार करनी चाहिये ।
( भार्या कैसी हो ?
भर्तृवशवर्तिनी भार्या ।। ३३६ ।।
भार्याके भर्ताके अनुकूल रहने में ही गृहस्थजीवन का कल्याण है । विवरण- गृहस्थजीवन नामक रथ पतिपत्नी नामके दो चक्रोंसे चलता है । इन दोनोंकी पारस्परिक अनुकूलता ही दोनोंकी स्वतंत्रता है तथा प्रतिकूलता दोनोंकी ही पराधीनता है । भर्ता भार्या दोनोंका आदर्शसमाजसेवक होना अत्यावश्यक है । परन्तु इन दोनोंमें पारस्परिक एकता तब ही संभव है जब कि दोनों के जीवनका लक्ष्य एक हो । पारस्परिक प्रतिकूलताका एकमात्र कारण आदर्शकी भिन्नता तथा विचारका विरोध ही होता है । भर्ताका ध्येय तो अपने श्रेष्ठ आचरणोंसे अपनी भार्याको अनुकूल बनाये रखना होना चाहिये, तथा भार्याका ध्येय अपनेको भर्ताकी अनुकूल सहधर्मिणी बनाना होना चाहिये । पारस्परिक अनुकूलता दोनों होका उत्तरदायित्व है । समाज के सच्चे सेवक मनुष्यता के संरक्षक सुयोग्य सन्ताजौका मातापिता होना ही भर्ता तथा भार्या दोनोंके जीवनका एकमात्र
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