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चाणक्यसूत्राणि
नीचताको चरितार्थ करनेकी चतुराई बन जाती है। नीचके शास्त्रज्ञानको देखकर उसके धोके में नहीं माजाना चाहिये । श्रेष्ठाचारी उच्च लोगोंकी विद्या समाजकल्याणका साधन होती है । नीचका शास्त्रज्ञान दुष्टके हाथ लगे घातक शस्त्र जैसा मानवसमाजकी शान्ति के घातक रूपमें काममें माया करता है। शास्त्रज्ञ दस्यु लोग अशास्त्रज्ञ दस्युभोंसे दस्युतामें अधिक प्रावीण्य प्राप्त किये रहते हैं ।
नीचके आक्रमणोंसे बचने के लिये उसकी विद्याको प्रयोगमें न लानेपर भी उसे जानना चाहिये। कुटिलता, माया, छल, कपट, अनृत, अपहरण, वंचन, स्वार्थकौशल ये ही नीचोंकी गुप्त विद्या हैं । इन्हें जानना तो चाहिये परन्तु अपनाना नहीं चाहिये । नीचता ही नीचका स्वभाव है तथा यही उसकी वह विद्या है जिससे वह श्रेष्ठ समाजको दुःख पहुंचाया करता है। नीच. ताको भी एक कला है जिसे सर्वसाधारण नहीं रहचान सकता परन्तु उप पर नीचों को गर्व होता है। राज्यसंस्थाके निर्माता विज्ञ लोगों में प्रजाको नीचोंके अत्याचारों से बचाने के लिये नीचताकी चतुराईको पहचाननेवाली तीक्ष्ण बुद्धि रहनी चाहिये । जो चतुराई नीचवृत्तिवाले असुरोंके पास रह कर समाजका ध्वंस करनेके लिये उद्यत रहती है, उसे व्यर्थ करनेकी चतुराई समाज के विज्ञ सेवकोंके पास पूर्ण प्रखरताके साथ जाग्रत रहनी चाहिये। जो शस्त्र दुष्टों के पास पहुंचकर दुष्टताके उपयोगमें आते हैं वे ही शस्त्र शिष्टों के पास दुष्टनाशके लिये रहने अत्यावश्यक हैं । नीचोंकी नीच. ताका आखेट बनने से बचे रहने तथा उसका उचित प्रतिकार करने के लिये उसे जानना आवश्यक है। वजन्ति ते मूढधियः पराभवं भवन्ति मायाविपु य न मायिनः। प्रविश्य हिघ्नन्ति शठास्तथाविधानसंवृतांगाग्निशिता इवेषवः ।।
वे असावधान लोग पराभूत हो जाते हैं जो मायावियों के साथ मायापूर्ण व्यवहार न करके सरल तथा उदार बर्ताव कर बैठते हैं । परकार्यनाशक धृत लोग नंगे देह में घुसकर उसे मारडालनेवाले तीक्ष्ण बाणों के समान