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कर्तव्य में समयका महत्व
( प्रभुत्वरक्षा राज्यसंस्थाका सार्वदिक कर्तव्य ) समकाले स्वयमपि प्रभुत्वस्य प्रयोजनं भवति ॥ २७३ ॥ साधारणकालमें अपना प्रभुत्व बनाये रखना ही स्वयं कर्त व्यका रूप लेकर उपस्थित रहा करता है ।
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विवरण - संधि, विग्रह आदि जटिल प्रश्नोंके उपस्थित न होनेपर साधारणकाल में संसार में अपनी प्रभुताको जीवित रखते रहना भी एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय प्रयोजन होता है । राजालोग विषमकालका अभाव देखकर राज्यश्री के प्रदर्शन तथा वृद्धि में प्रमाद न करें । राजाके प्रभुत्व पर चोट न मानेका काळ साधारणकाल कहाता है। घोट ही आक्रान्त मनुष्यको चोट बचाकर भात्मरक्षा करनेका कर्तव्य सौंप देती है । परन्तु राजशक्तिसंपन्न लोग अपने पर बाह्य माक्रमण न होने की अवस्था में अपने आपको शक्तिसंग्रहकी आवश्यकतासे दीन समझनेकी भ्रान्ति न करें | अपने प्रभुत्वको दृढ बनाये रखने में प्रमाद करना ही आक्रमक शत्रुओंको पैदा करनेवाला होता है । ( कर्तव्यमें समयका महत्व )
( अधिक सूत्र ) स्वकाले स्वल्पमपि प्रभूतत्वस्य प्रयोजनं भवति ।
जैसे व्याधि उपस्थित होनेसे पहले स्वास्थ्यरक्षाका साधारण नियम भी व्याधिनिरोधक होता है । परन्तु व्याधि होजानेपर स्वास्थ्यरक्षा के साधारण निमयका उल्लंघन होते ही व्याधि की समस्या जटिल होजाती है । इसी प्रकार साधारण समयका प्रभुत्वरक्षाका साधारण कर्तव्य उपेक्षित होजाय तो उसका परिणाम राज्यसंस्था के लिये प्रभूत ( विराट् ) संकट बुलानेवाला बनजाता है ।
विवरण- उचित समयपर उपयोग में लाई हुई घोडी वस्तु भी प्रचुर वस्तुकी रक्षा या उत्पत्तिकी साधक बन जाती है । कर्तव्यका उचित काल बीत जानेपर तो प्रचुरकी प्रचुरता भी निष्फल होजाती है । कर्तव्य के संबंध में
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