________________
साधनों के उपयोग पहचानो
विवरण- स्वयं चोरी करना समाज में चोरीका दुर्दष्टान्त उपस्थित करके चौर्यवृत्तिको प्रोत्साहित करना होता है । चोर लोग अपनी इस कुप्रवृत्तिसे स्वयं भी चोरी के आखेट बननेका द्वार खोल देते हैं। चोरी करना अपने प्राण को भी विपद्मस्त करनेका कारण बनजाता है ।
२४१
पाठान्तर- परद्रव्यापहरणमात्मद्रव्यविनाशहेतुः । ( चोरी मनुष्यका सर्वाधिक विनाश ) न चौर्यात् परं मृत्युपाशः ॥ २७० ॥
मृत्युका पाश चोरीके पाशसे अधिक दुःखदायी नहीं होता ।
विवरण - चोरी करना अपने मनुष्यतारूपी स्वरूपकी हत्या करके नैतिक मौत से मरते रहना है । चोरीसे मनुष्यकी मनुष्यता, धन, यश तथा शरीर सभी संकटापन्न होजाते हैं ।
( समाजमें नैतिकता के आदर्शको रक्षाके लिये अल्पसाधनों से जीवन बिताने का व्रत को )
--
यवागूरपि प्राणधारणं करोति लोके ।। २७९ ।। संसार में शरीररक्षा के लिये तो यवागू भी पर्याप्त है । विवरण - चोरी, उत्कोच, अपहरण, लुण्ठन, प्रतारणा, द्यूत ( जुआ ) आदि लोभज अमानवोचित उपायोंसे अनधिकार पड्स भोजन तथा नानाविश्व ऐश्वर्य पाकर नैतिक मृत्युको अपना लेनेसे तो यही अच्छा है कि राज्या धिकारी लोग सत्योपार्जित लप्सीसे जीवन धारण करके अमरत्व पाकर आत्मकल्याण करें और समाज के सामने नैतिकताका आदर्श सुप्रतिष्ठित करें ।
( साधनों के उपयोगका उचित समय पहचानो ) न मृतस्यौषधं प्रयोजनम् ।। २७२ ।।
मरचुकने के पश्चात् औषधप्रयोगका कर्तव्य समाप्त हो जाता है ।
१६ ( चाणक्य . )