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क्षुद्र सदा त्याज्य
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( अधिक सूत्र) धृत्या जयति रोगान् । धृतिसे ( अर्थात् मन, प्राण तथा इन्द्रियोंको वशमें रखनेसे) रोगोंपर विजय पाया जासकता हैं।
विवरण- मनुष्य तिसे रोगोंको जीतलेता है। काम-क्रोधादि कुप्रवृत्ति मनुष्यके मानसिक रोग हैं । त्रिदोषोंकी विकृति शारीरिक रोग हैं। मनको सदा कामादि रिपुषों के माक्रमणसे अप्रभावित रखनेवाला सत्यनिष्ठ कर्मवीर स्वभावसे ही अपने देहको रोगाक्रमणके कारणोंसे मुक्त रखकर सर्वावस्थामें उत्साही कर्तव्यशील बना रहता है ।
___ नास्त्यधृतेहिकामुष्मिकम् ॥ २१४ ॥ अधीरका वर्तमान और भावी दोनों सुखहीन ( दुःखमय )हो जाते हैं। धीरज न होनेसे कर्मका सामर्थ्य नष्ट होजाता और फल अप्राप्त रहजाता है। सफलता पानेके लिये धीरताकी परमावश्यकता है।
विवरण- अपने मनपर कामादि रिपुओं का आक्रमण होने देनेवाला असत्यका दास मानव वर्तमान क्षणमें कुकर्मासक्त दुःखी रहकर, अपने भूतको भी सुखविहीन सिद्ध करदेता और भावीको भी सुखसे वंचित बनाडालता है। वह अपने भूतको तो पश्चात्तापका कारण और भावीको नैराश्यमय बनाये रखता है।
(क्षुद्र सदा त्याज्य ) ( अधिक सूत्र ) गुणवानपि क्षुद्रपक्षस्त्यज्यते । असत्यके प्रेमी नीच लोग गुणवान दीखनेपर भी त्याज्य होते हैं।
विवरण- शिक्षा, शिष्टता, सौजन्य तथा संपत्तिसे युक्त भी नीचपक्ष इसलिये त्याग दिया जाता है कि उस पक्षमें मिलना वास्तव में सत्यका ही