________________
ऐश्वर्य नहीं बचा सकता
१९३
जो लोग समाज-कल्याणमें अपना भाग न देकर केवल व्यक्तिगत भाव. श्यकता पूर्ण करने में ही अपनी समस्त उपार्जन-शक्ति व्यय करडालते हैं वे * पापोजी' हैं । तात्पर्य यह है कि मनुष्यको सामाजिक सहयोगके महस्वको जानकर प्रसन्नता और गर्वानुभूतिके साथ समाज-कल्याणमें दान करते रहना चाहिये।
समाजके कल्याणमें अपना कल्याण समझनेवाला राष्ट्रसेवक बनना मानवमात्रका कर्तव्य है । इस कर्तव्यको समझनेवाला तो इसे प्रेम (अर्थात् स्वेच्छा ) से करता है. परन्तु स्वार्थी मनुष्यको तो दबावमें लाकर ही कर्तव्य करनेके लिये विवश किया जा सकता है। इस प्रकारके मूर्ख लोग समाजकी शान्तिमें सहयोग देनेका कर्तव्य स्वेच्छासे नहीं करते । इन लोगोंपर राज्य संस्थाके द्वारा समाजकी शान्ति में सहयोग देनेका दबाव डाला जा सकता है। राज्यसंस्था भी प्रजापर समाजकी शान्तिमें सहयोग देनेका दबाव तब ही डालती है, जब राष्ट्र सजग हो और अपनी राज्यसंस्थापर ऐसा करने का दबाव डालने के लिये सन्नद्ध हो । राज्यसंस्था तब ही शक्तिमती तथा कर्तव्य-परायण होती है, जब उसका निर्माता राष्ट शक्तिमान हो। राष्ट्रका शक्तिमान होना तो राज्य संस्थाके शक्तिमान होनेका कारण और राज्यसंस्थाका शक्तिमती होना समाजको शक्तिमान बनाये रखनेवाला कारण होता है । राष्ट्र नो राज्यसंस्थाले बल पाता है और राज्य संस्था राष्ट्र से अनु. प्राणित होती रहती है । राष्ट्र और राज्य संस्था दोनों परस्पर भवित होकर राष्ट्रको साकार स्वर्ग बना देते हैं । राष्ट्र तथा राज्यसंस्था दोनों एक दूसरेपर आश्रित और दोनों एक दूसरे के सहायक हो तब ही पारस्परिक दवावसे सन्मार्गरम रह सकते हैं । इस दृष्टि से राज्य संस्था समाज के सच्चे हितैषी सेवकों को ही स्थान मिल सकने की सुदृढ व्यवस्था रहनी चाहिये । ___ . ( बडस वड! ऐश्वर्य असंयमीको नहीं बचा सकता )
महदै वर्ष प्राप्याप्यधृतिमान् विनश्यति ॥ २१३ ॥ अविवेकी लोग राज्यैश्वय पाकर भी नष्ट हो जाते हैं।
१३ (चाणक्य.)