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________________ चाणक्यसूत्राणि जिस समाजमें पापियोंको खुलकर खेलनेका अवसर मिल जाता है और गह-घाटोंमें स्वच्छाचारकी छूट मिलजाती है, जिस समाजके प्रहरी (पुलिस) तथा न्यायालय पापियोंके संबंधमें ४दासीनता या उपेक्षा धारण करलेते हैं, वहाँके राज्य के मुखिया लोगोंको भी पापी न मान लेनेका कोई कारण नहीं रहता। जब तक किसी देशका लोकमत पापी राज्याधिकारियों के विरुद्ध सुतीक्ष्ण दण्ड-प्रयोग करनेवाला नहीं बनता, तब तक समाजकी शान्तिका अपहरण करनेवाले इकले-दुकले पापियोंको भी पापोंसे रोककर नहीं रक्खा जा सकता । इसमें कोई सन्देह नहीं कि जिस देशके राज्याधिकारी पापी होते हैं वहां पापियोंका ही राज्य होता है। राज्याधिकारियोंका पापी होना और उन्हें पापी रहने देना किसी देशकी ऐसी दैन्यमयी अवस्था है कि समाजके लोग अकेले-अकेले बैठकर देशकी दुर्दशापर वन्ध्य चर्चामात्र करके अपना निकम्मापन सिद्ध किया करते हैं। ऐसे देश में संगठनशक्तिको जगाना ही इस सूत्रका प्रासंगिक अभिप्राय स्वीकृत होसकता है। इकले. दुकले पापियोको दण्डित करने से भी आवश्यक तो उन पापी राज्याधिकारियोंको दण्डित करना है जिनका पाप सहस्रगुण होकर प्रजाको अभिभूत कर लेता है। व्यक्तिगत पाप करनेवाले इक्के-दुक्के पापी लोग पापी राज्या. धिकारियोंसे ही प्रोत्साहन पाते हैं। पापी राज्याधिकारियोंसे प्रोत्साहन पानेवालोंको पापसे रोकना, तब तक संभव नहीं होता, जब तब कि पहले पापी राज्याधिकारियोंको पूर्णतया दण्डित न कर दिया जाय : पाठान्तर- न पापकर्मणां संक्रोशभयम् । ( उत्साह के लाभ ) उत्साहवतां शत्रयोऽपि वशीभवन्ति ॥ १८२ ॥ दुर्दान्त शत्रु भी उत्साहवालोंके वश आजाते हैं। .. विवरण-- उत्साह भौतिक शक्ति नहीं है। मनोबल ही उत्साह है। मनोबल भौतिक शक्तिपर निर्भर न रहकर सत्यनिष्ठामें ही रहता है। सत्यकी शक्ति से शक्तिमान व्यक्ति मजेय होता है। वह
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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