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चाणक्यसूत्राणि
पापी लोग दण्ड- भय न रहनेपर निन्दाकी ओरसे पूरे निर्भय होजाते और उसकी उपेक्षा करते हैं ।
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अधार्मिक राज्यों में बडे पापी तो दण्डदाता बनजाते हैं और छोटे पापी तथा कुशासन-विरोधी धर्मात्मा लोग दण्डभोक्ता बनजाते हैं। जहां संयोगवश पापी ही दण्डदाता बनजाते हैं वहां वे अपने पापको दण्डसे बचा-बचा कर पाप करते रहने का अवसर पालेते हैं । इसप्रकार के राज्याधिकारी राष्ट्रीय पापी या राष्ट्रकंटक कहे जाते हैं । इन कंटकों का संशोधन किये बिना राज्य की जनताको शान्ति नहीं मिल सकती । ये लोग राज्याधिकारकी शक्ति से शक्तिमान होकर असंगठित जनमतको दबाकर अपने प्रभावसे राजकीय पापि योंका एक कृत्रिम जनमत (गुट) प्रस्तुत कर लेते हैं। दण्डाधिकारी पापियों की चाटुकारिता करके ही जीविकाजन करनेवाले पापी लोग जनमतके ठेकेदार बनकर इन लोगोंकी पापी घटनाओंको प्रकाशमें न आने देनेवाली ढाल बन जाते हैं । ये लोग इनकी ढाल बनकर इनकी स्तुतियों, जयन्तियों और नारोंके आडंबरोंसे इन लोगोंको लोकनिन्दासे बचाये रखते हैं । पापी राज्याधिकारियोंकी यह पापलीळा ( पापचरित्र ) दूषित राज्यसंस्थाओं में ऊपर से नीचे तक महामारीकी भाँति व्याप्त रहती है ।
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इक्के-दुक्के, चोर-डाकू तो लोगों की दृष्टिसे छिपाकर ही अपना पाप करते हैं | परन्तु पापी राज्याधिकारी लोग अपने हाथसे प्रजाका रक्त शोषण भी करते हैं और लंबे-चौडे वेतन-भत्ते आदियोंसे अपनी थैलियाँ भी भरते रहते हैं । इन लोगोंको राष्ट्रीय पाप करनेसे रोकना जनमतका ही उत्तरदायित्व है। जब इन्हें रोकने टोकने तथा संयत रखनेवाला जनमत नहीं रहता, तब इन लोगोंका दुःसाहस बढ जाता और देश में करोंकी भरमार होती चली जाती है । नाना प्रकारकी लोकहितकारी लंबी-चौड़ी दिखावटी योजनायें बना-बनाकर अपना ढिंढोरा पीटकर गुप्त प्रकारोंसे अपनी जेब भरते रहना ही इन लोगोंका उद्देश्य होजाता है । जहाँ लोकमत सुपुप्त होता है वहाँके राज्याधिकारका निन्दासे न डरनेवाले पापियों के हाथोंमें चला जाना अवश्यम्भावी होजाता है ।