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सभामें कटाक्ष हानिकारक
नम्र, उदार, सारवती, सभ्य तर्कसंगत गमीर अकाट्य मनधिशेप्य भाषाका प्रयोग होना चाहिये । यह बडी गर्हित परिपाटी है कि सभामें किसी वक्त. ब्यके समय किसीपर व्यक्तिगत कटाक्ष जैसे हल्के भरोसे प्रतिपक्षीका मुख. मुद्रण करना चाहा जाय और संसदके किसी निर्णयपर पहुंचनेके मुख्य उद्देश्यको पीछे डाल दिया जाय । ऐसा करनेसे संसद संसद न रहकर मल्लयुद्धका अखाडा बनजाती और उसका मुख्य उद्देश्य समाप्त या नष्ट हो जाता है । संसदकी बैठकें सदा नहीं होती। वे जब कभी हों तब समस्त सदस्योंकी एकाग्र चिन्ताशक्तिके पूर्ण सदुपयोगसे विचारणीय विषयका सारभाग मक्खनके समान उद्धृत होकर सबको प्राप्त हो, इस बातका सभा. संचालकोंको पूरा ध्यान रखना चाहिये और व्यक्तिगत कटाक्ष करनेवाले वक्ताको बोलनेसे रोककर किसी दूसरे योग्य वक्ताको प्रकृत पक्ष के प्रतिपादनका अवसर देना चाहिये । सभामें व्यक्तिगत दोष दिखानेपर उतर आनेवाला व्यक्ति अपने इस आचरणसे सिद्ध करता है कि उसके पास विचारणीय पक्षको अनुचित सिद्ध करने वालो युक्ति नहीं है। वह अपने इस क्षुद्र ढंगसे प्रतिपक्षीको अवसर देदेता है कि वह भी सभाके सामने उसके व्यक्तिगत दोपोंको खोलकर रखे । दूसरके व्यक्तिगत दोष दिखानेका परिणाम प्रतिपक्षीसे अपने दोषों का बखान कराना होता है।
जब सभामें किसी मनुष्य के वक्तव्यको परदोष दिखानामात्र पामो तब निश्चय जानो कि यह अपने दोष हटाने में उदास है और अपने में दोषाधिक्य सिद्ध कर रहा है । जिन लोगोंका लक्ष्य निर्दोष रहना होता है, उनके वक्तव्योंमें परदोषदर्शन नहीं रहता। परदोषदर्शन लक्ष्यवालों का अपने दोषोंकी उपेक्षा करनेवाला होना अनिवार्य होजाता है । अभियुक्त कह गये हैं---
यदीच्छसि वशीकर्तुं जगदेकन कर्मणा । · परापवादसस्येभ्यो गां चरन्ती निवारय ।
यदि तुम संसारको एक ही कर्मसे वशमें करना चाहो तो तो अपनी याणीरूपी गौको दूसरोंके दोषच रूपी सस्यों से दूर रखो।