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जीवन में उपायका महत्त्व
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स्वरूप है । कर्तव्यनाश यही कहाता है कि मनुष्य कर्तव्यको तो त्याग दे और अकर्तव्य करने लगे। कर्तव्यसे भ्रष्ट होकर जो भी कुछ किया जाता है वह निष्फल ही होता है। सच्चे कर्तव्यमें निष्फलता नामकी कोई स्थिति संभव नहीं है । कर्तव्यको यह कैसी महत्वपूर्ण स्थिति है कि कर्तव्य स्वयं ही सफलता है। सरचे कर्तव्यशील लोग कर्तव्यके फल से न बंधकर, इसके फलके मिलने न मिलने के सम्बन्धमें उदासीन रहकर, कर्तव्यपाल. नको ही कर्तव्यका फल मानकर और उसी में अपना जीवनसाफल्य जानकर, उसे अपना पूर्ण मनोयोग देकर करते हैं। कर्तव्यशील लोगों की अचूक सफलताका यही रूप होता है ।
( जीवन में उपायका महत्त्व ) कार्यार्थिनामुपाय एव सहायः ।। ९.६ ॥ उपाय ही कार्यार्थियोंका सच्चा सहायक होता है। विवरण- उपाय कार्यार्थियोंको दसों दिशाओं में सुरक्षित रखनेवाला तथा शत्रपर विजय पानेकी योग्यता देनेवाला, सञ्चा बल या साथी है। कर्तन्यशील लोग कार्यकी आवश्यकताके अनुसार अपनी निश्चयात्मिका बुद्धिसे सामादि उपयुक्त साधनोंका निर्णय करके अपनी विजय के सम्बन्धमें निःसन्दिग्ध, विजयोत्साह से शक्तिमान तथा अनुकूल प्रतिकूल फलोंके प्रति निरपेक्ष होकर अपने भापको कर्तव्यमें झोंक देते हैं । इसलिये कार्यार्थी लोग सिद्धि तब ही पा सकते हैं जब वे कार्योपयोगी उपायोंको अभ्रान्त रीतिसे सोचकर कर्तव्यपालनके सन्तोषरूपी सिन्द्रिको पहलेसे ही अपनी मुट्ठीमें लेकर ( अर्थात् सिद्धि असिद्धि में निरपेक्ष रहनेवाली पूर्णतामयो स्थितिमें रहकर) ही कर्ममें प्रवृत्त हों। वे सिद्धि पानेका यह मावश्यक रहस्यमय सिद्धान्त कभी न भूलें कि सिद्धियां सिद्धों को ही प्राप्त हुआ करती हैं । सिद्धियां अपनेको मसिद्ध माननेवालोंके गले में जयमाला कमी नहीं डालतीं । भारवि कविने ठीक ही कहा है