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________________ चाणक्यसूत्राणि कर देते हैं। जो राज्यसंस्था किसी भी व्यक्तिकी व्यक्तिगत सुरक्षाका उत्तरदायित्व पूरा करने में असमर्थ हैं, उसे न केवल इस अत्याचारितसे प्रत्युत किसी भी व्यक्ति से कर लेते रहनेका कोई औचित्य या अधिकार नहीं । १० यदि कोई राष्ट्र अपनी राज्यसंस्थाको पवित्र रखना चाहे तो उसे अस्यावारितोंकी व्यक्तिगत हानि या तो अत्याचारितों से पूरी करानी चाहिये या फिर राजकोष से पूरी करना अनिवार्य बना लेना चाहिये । इसीके साथ एक भी किसी अत्याचारितकी असंशोधित हानि पर सम्बद्ध उत्तरदायी राजकर्मचारीको पदच्युत करनेका कठोर नियम बनाकर रखना चाहिये । इतना किये बिना राज्यसंस्थाको कर्तव्यतत्पर रखनेका अन्य कोई भी साधन नहीं है । राजशक्तिके सिरपर भी तो एक दण्ड होना चाहिये । तब ही वह कर्तव्य तत्पर रह सकती है। एक भी अत्याचारितके प्रति राज्यसंस्थाकी उपेक्षापूर्ण उदासीनता, उसे समस्त प्रजाका प्रच्छन्न बैरी सिद्ध करनेवाली भातती मनोदशा है । प्रजाकी हानिका समाचार पाकर भी उसकी हानिके सम्बन्ध निर्लिप्त रहनेवाली राज्यसंस्था स्पष्ट रूप में राष्ट्रद्रोही है, प्रजापीडक है और आसुरी राज्य है । चाणक्य के मन्तव्यानुसार राज्यसंस्थाके आदर्श राज्यसंस्था होनेकी यही कस्पोटी है कि वह राज्यसंस्थाके निर्माता समाजमें ऐसी शक्ति जगाकर बक्खे, उसे ऐसा ओजस्वी सतर्क और समाजहितचित्रक बनानेके लिये विवश कर दे जिसके उद्दीप्त प्रभावसे वह नेता तंत्र के पंजे में फंस ही न सके और अपने उपार्जित सार्वजनिक संपत्तिरूपी राजकोषको प्रतारणामयी लम्बी चौडी शोषक योजनाओ में अपव्ययित होनेसे रोक सके और उसे केवल जन कल्याण में व्यय होनेके लिये सुरक्षित कर दे । आदर्श राज्यसंस्था वही है जिसकी योजनायें प्रजाको उसके भूमि, धन, धान्यादि पाते रहने के मूलाधिकार से वंचित कर देनेवाली नहीं, उसे लंबी चौडी योजनाओंके नामसे कारभारसे आक्रान्त न कर डाले । राष्ट्रोद्धारक योजनायें राजकीय व्ययों में से बचत करके ही चलाई जानी चाहिये । राजग्राह्य भाग देकर बचे प्रजाके टुकडके भरोसे पर लम्बी चौडी योजना क्रेड बैठना प्रजाका उत्पीडन है ।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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