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प्रात्म-सम्बोधन इस ग्रन्थ के उदघाटन कता के कुछ शब्द
इसमें हमारे "प्रातः स्मरणीय श्री मद्गणेशशिष्य" अध्यात्मयोगी शान्तमूर्ति न्यायतीर्थ पूज्य श्री मनोहर जी वर्णी "सहजानन्द" महाराज ने समय समय पर उठे हुए अपने हृदय के उद्गार निबद्ध करके हम लोगों का महान उपकार किया है।
यद्यपि इन मनोरथों के लिखने का प्रमुख उद्देश्य अापका निज के सम्बोधन का रहा किन्तु उनसे नो हम लोगों के मिथ्यात्व अन्धकार नष्ट होने व वीतराग परिणति के मार्ग में लगने का जो महान् उपकार है वह चिरस्मरणीय है। . मुझे इस बात का भी महान् हर्प है कि मैं असोज माह में एक दिन आपके दर्शनार्थ आपके सत्संग कुञ्ज. में गया वहां आप कुछ लिख रहे थे मैंने कुछ उपदेश की प्रार्थना की तब आप जो लिख रहे थे उसे समझाया आप के लिखे हुए जीवस्थानचर्चा, अध्यात्मप्रश्नोत्तरी, तन्वरहस्य, दृष्टि, धर्मवोध, पद्यावलि, आत्मसम्बोधन,