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[ ४२ ] रहा हूं, अब इस अपमान के सह लेने के लायक राग नहीं रहा अतः' क्लेश होने लगा। इस अपमान के मूलरूप विभाव को दूर ही करना है, जो हो चुका सो हो चुका ।
७-६३८. मुझे लाभ नहीं जो जनता मेरे समीप आवे, मुझे
लाभ नहीं जो उपकार के कोई गुण गावे, कोई क्या कहेगा' 'यही तो कहेगा इन्होंने संस्थायें चलवाई भवन बनवाये "उपदेश दिया 'अच्छा प्रभाव है आदि सो सोचो जो पर पदार्थ के कर्तापन की बात लादे वह वह ज्ञानियों को दृष्टि में सन्मान है या अपमान ?
८-७२८. कोई भी प्राणी तुम्हारे द्वारा तिरस्कार के योग्य
नहीं, ये तो सब स्वतन्त्र पदार्थ हैं तेरा सम्बन्ध क्या ? तिरस्कोर करो अपने क्रोध मान माया लोभ का करो तिरस्कार और तेजी से करो, इन्हीं कषायों ने. तुझे भटका रक्खा है और दुःखी कर रखा है।
ॐ ॐ ॐ ह-७६४. सब जीवों को अपने ही समान चैतन्य पुञ्ज को