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७ सन्मान-अपमान
१--११६. जिन आत्मावों से आप आदर यश चाहने हो, उन्हें पहचाना है या नहीं; पहिचाना ! यह बात तो झूठ है क्योंकि उनका यथार्थ रूप जानने वाले के आदर व ख्याति की चाह नहीं हो सकती, अतः यदि पहिचान लिया तो सम्मान व प्रसिद्धि की चाह छूट जाना चाहिये, यदि नहीं पहिचाना तो अज्ञात से सन्मान चाहना मूर्खता है ।
ॐ फ २- ३६३, जो खुद के सन्मान की चेष्टा करता है वह अपमान के सन्मुख है, अरे ! यहां तो सभी जात्या एक हैं, जिस दृष्टि में मान अपमान का भाव होता वह दृष्टि ही भृतार्थ है ।
फॐ फ्र
३ - ३७८. नम्रता की परीक्षा अधिकगुणी या अधिक यश वाले पुरुषों के समागम में होती है ।
फॐ फ