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३ भक्ति
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१-१५. प्रभो ! रोकते रोकते चित्त कलुपित हो जाता है,
यह आपके भक्त के लिये लज्जा की बात है और भक्ति के जीवित रहने का खतरा है, सुखार्थी का प्रोण भक्ति है। ह देव ! इस खतरे (कलुपता) से बचाइये ।
- ॐ ॐ ॐ २-१५. परमात्मा का स्मरण मोहसागर में डूबते हुए के लिये
पवित्र व आवफल जहाज है।
३-१६. हे भगवन् ! मुझ से सविधि अनतिचार चारित्र नहीं पलता, परन्तु आप जानते ही हैं कि मैं आप को छोड़ि अन्य का भक्त नहीं हूँ मैं और कुछ नहीं चाहता हूं .. "यही भक्ति दृढ़ हो जावे" केवल यही भावना है।
४-३१. यदि तुम्हारा ध्यान, परमात्मा व शुद्धात्मा में नहीं
जाता तो जहां जाता वहीं जाने दो, परन्तु स्वरूप तो