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[६] १६-८२८. संसार यह चिल्लाता है--यह मेरी स्त्री है, यह
मेरा बेटा है, यह मेरा धन है, यह मेरा मकान है, देखो ये ही शब्द भेदविज्ञान की बातें बना रहे हैं. यह मेरा है ऐसा कहने में यह ही तो आया-यह यह है-मैं मैं हूं-यह मेरा है, ऐसा तो कोई नहीं कहता मैं वेटा हूँ, मैं स्त्री हूं, मैं धन हूं, मैं मकान हूं आदि । भेदविज्ञान के लिये ज्यादह क्या परिश्रम करना, आंखों सामने बात है, न मानने का क्या इलाज ?
२०-८३३. जब भी तुम व्याकुल होओ तब तुम
अपने आप अपनी सहायता करो अर्थात् भेदविज्ञान का आश्रय लो, संसार सब अपनी ही चेष्टा करता तुम्हारा कोई कुछ नहीं कर सकता।
२१-८३८. पर में आत्मकल्पना होने से जो वेदना
होती है वह भेदविज्ञान से स्वयं नष्ट हो जातो है, दुःख से छूटने का उपाय भेदविज्ञान है, जीवन में