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[ ७ ] करना है इसका उपाय भेदविज्ञान है इसे ही दृढ़ करो।
१२-३६५. तुम अपने को मनुष्य, त्यागी, श्रावक, पंडित,
मूर्ख, गुरु, शिष्य आदि कुछ मत समझो और समझो मैं चेतन हूँ, चेतना (जानना) मेरा व्यापार है और चेतना में परिणत होना निजकार्य है, अन्य सब क्रियायें खतरनाक और मोहक हैं।
१३-४४५. राग की वेदना मेटने को उपाय तो यह है कि
राग के विषयभूत पदार्थ को अपने से भिन्न समझो तथो उस राग को भी अपने स्वभाव से भिन्न एवं अहितकारी समझो।
१४-५१४. मन इन्द्रियों का दादा है इसका नाम अनिन्द्रिय (थोड़ी इन्द्रिय) न दिखने की अपेक्षा से है परन्तु यदि दौड़, विषय, अशान्ति आदि की अपेक्षा देखी जावे तो इन्द्रियों का दादा है, फिर भी यदि मन का वेग उलट दिया जाय तो हम सव अनादिकोल से भटकने वाले प्राणियों को तत्वपथ में लगाने वाला देवता है, वेग बदलने का पैंच भेदविज्ञान का अभ्यास है इसे ही