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[ २८३ । ७-२४५. निरहंकार हुए बिना शान्ति प्राप्त नहीं हो सकत
अतः अहंवुद्धि छोड़ो और सुखी होलो।
१-२८८. सत्यसुख वहीं हैं-जहां विकल्पों की शान्ति है,
अरे भव्य ! निर्विकल्प दशा का तो अवसर आवेगा ही; तब जो चीज नियम से छूट जाना है उसमें राग करने से लाभ क्या ? व उसका भार बढ़ाने से लाभ क्या ?
१०-३०४. यदि तुम्हें शान्ति पसन्द है तो तुम अपना ऐसा व्यवहार रखो जिप्स व्यवहार के निमित्त से दूसरों को अशान्ति पैदा न होवे क्योंकि तुम्हारे व्यवहार से दूसरों के अशान्त होने पर तुम्हें शान्ति न होगी।
ऊ ॐ ॥ ११-३५३, त्यागवेष की ओर तुम्हारा प्रयास शान्ति के अर्थ था इस समय कहां हो ? विचार करो और सर्व पुरुषार्थ से अपने उद्देश्य पर पहुंची।
ॐ ॐ म १२-३७८A. शान्ति की परीक्षा अनिष्ट समागम में होती।
॥ ॐ ॥ १३-४८५. जिस पद्धति में अब तक बहते आये उस पद्धति