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[ २३४ ] बहुत काल के लिये संतान बन जाती है, यदि शोक का परिणाम रहेगा तो उसका फल शोक ही शोक है और यदि पर से भिन्न ज्ञानस्वभार के ध्यान का परिणाम रहेगा तो इसका फल ज्ञान स्वभाव रूप परिणमान ही है, ज्ञानरूप परिणमान ही परमार्थ सुख है। दोनों ही वाते याने शोक और आत्मा सुख ध्यान से ही मिल जाते हैं अब किसमें आदर करना है ठीक निर्णय कर लो। श्रीपूज्यपाद स्वामी ने कहा है
इतश्चिन्तामणिर्दिव्यः इतः पिण्याकखण्डकम् । ध्यानेन चेदुमे लभ्ये क्वाद्रियन्ताम् विवेकिनः ।।
५-६७५. रोज रोज पुराना काम करता हुआ भो नया नया
काम मानता चला जाता है, मृत्यु किसी भी समय प्रा सकती इसका १मिनट भी ध्यान नहीं करता | अरे ! अपना वह चित्र तो चित्त में बैंच कि मैं तो किसी गति में चला गया और इस शरीर को लोग ठठरी पर रखकर लिये जा रहे हैं, मरघट में पहुंच कर जलाने वाले हैं, और जलाकर लौट गये हैं।
६-६८१. ज्ञानोपयोग के सिवाय अन्य कोई तुम्हारा सहाय