________________
-[ १६ ] था । २६ वर्ष की अवस्था में मनोहर पद्यावलि' की रचना की जिससे पता.चलता है कि आप काव्य बन्छन्द शास्त्र के भी उच्चकोटि के जानकार हैं.।.एक ममस्थान सूत्र रचा जिसमें १११ अध्यायों में लगभग ४००० सूत्र हैं। धर्म की विशेष जानकारी के लिये 'चौतीस ठाना' ग्रन्थ का निर्माण किया जिसमें आपके विशाल ज्ञान दिग्दर्शन होता है। आत्म-सम्बोधन जिसमें १४४
ल्पनाने हैं. इस बात को सिद्ध करने में पर्याप्त हैं कि आपके परिणामों में कितनी, संसार, शरीर भोगों से वैराग्यता भरी हुई है,। एक २ कल्पना ऐसी है जिसको जीवन में उतार' करी सर्व साधारण अपना कल्याण कर सकता है। इस पुस्तके 'का दूसरा,संस्करण अब अापके समक्ष है। जन साधारण 'को प्रारम्भिक धर्म-झान के हेतु आपने धर्म वोध. नामक पुस्तक की रचना की है जो शीन ही प्रकाशित हो रही है। इन सबके अतिरिक्त अापने फरवरी सन १७५१ में गीता रंची जिस में -३१५. संस्कृत के लोक हैं । यह महान और उच्चकोटि का ग्रन्थ है । और अनेक ग्रन्थ श्राप लिख रहे हैं। जो कि हमें आशा है बहुत शीघ्र ही प्रकाश में आयेंगे और सर्ग साधारण के कल्याण में निमित्त होंगे।
सहजानन्द 'गीता' के हर श्लोक के चौथे चरण में सहज आनन्द का वर्णन