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[ २१२ ] के उदाहरण, प्रक्रियावलोकन तुम्हारे अहित में ही निमित्त हो सकते हित में नहीं अतः उनके उदाहरण व प्रक्रियाकलाप की उपेक्षा ही करो।
१३-३४०. किसी साधु या सत्पुरुष को मान्यता देखकर तुम चाहते हो मैं भी ऐसा होजाऊँ, यह अच्छी बात है. परन्तु सोचो तो सही वह कैसा है ? अरे-वाह्यडम्बर होते हुए भी वह उससे निरपेक्ष है उसके लिये वह क्या है ? इसी तरह जब तुम वैसे होलोगे तुम्हारे लिये भी • वह "क्या" बन जावेगा फिर उससे तुम्हें. लाभ क्या ? प्रत्युत उस आडम्बर में तुम अापत्ति मानोगे।
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