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[ १७ ] पूज्य श्री वर्णी जी :___ अब तो आप सब झंझटों से मुक्त हो चुके थे । सुख और शांति की प्राप्ति के हेतु ज्ञानार्जन में जुटगये। वैराग्यता और बढ़ी। २ वर्ष बाद ही काशी मे सप्तम प्रतिमा के व्रत आदरे । तभी से आपको श्री वर्णी जी कहने लगे ।
आपके पूज्य गुरु जी श्री पं० गणेशप्रसाद जी वर्णी (वर्तमान पूज्य श्री १०५ क्षुल्लक गणेश प्रसाद जी वर्णी) पैदल यात्रा करते २ सागर ( सी० पी० ) पधारे थे । सहारनपुरके कुछ व्यक्ति दश लक्षण पर्व में पूज्य गुरु जी के दर्शनार्थ सागर गये। वहीं पर आपके दर्शनों का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ और साथ ही साथ आपकी मधुर और मनोहर वाणी सुनने का भी । वहुत प्रभावित हुए । पूज्य गुरु जी से आपको उत्तर प्रान्त में भेजने के लिये प्रार्थना की प्रार्थना स्वीकृत हुई। उत्तरप्रान्त का अहोभाग्य आप जून १९४५ को सहारनपुर पधारे। आपकी मधुरवाणी ने सब का मन मोह लिया। संसार के दुखी प्राणी किस प्रकार दुख से छूट जायें यही सदैव आपकी भावना रहतो थी। दुखी प्राणियों को धर्मामृत पिलाने की एक तड़फन थी आपके हृदय में । इसी उद्देश्य से आपके हो उपदेश से प्रभावित होकर सहारनपुर में उत्तर प्रान्तीय दिगम्बर जैन गुरुकुल की स्थापना आपके ही कर-कमलों द्वारा हुई। अव यह गुरुकुल श्री हस्तिनागपुर तीर्थ क्षेत्र पर सुचारू रूप से चल रहा है।