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[ १६७ ] और जिसने चैतन्य प्रभु का दर्शन किया वहां संतोष है।
१०-३४६. शुद्धात्मा के अनुभव में अहंता और ममता को विनाश होता और शुद्धात्मा का अनुभव भेदविज्ञान के अनंतर होगा अतः जब तुम्हें परिणाम का ध्यान रहे तव समझो यह विभाव है उसमें संताप मत करो, तुम्हारा तो स्वभाव ज्ञायकभाव है।
' ॐ ॥ ११-८६३. मनुष्य की तृप्ति तो त्याग से ही हो सकती है, परसम्पर्क तो असंतोप का वातावरण है ।
9 ॐ