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१ - ७३. जगत् न अपने अनुकूल हुआ और न होगा इसलिये किसी के प्रतिकूल होने पर चिन्ता करना व्यर्थ है व पाप का बंधक है ।
३२ चिन्ता
फॐ फ
२- २६६. आगामी काल की चिन्ता सम्यक्त्व का अतिचार है, अतः- क्या होगा - यह भय मत करो और न अति
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भविष्य के प्रोग्राम बनाओ, वर्तमान परिणाम पर ध्यान
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३ - ३११. जो तुम्हें कोई चिन्ता हो तब अपने ज्ञायक स्वभाव का चिन्तवन करे। - जो अखड और अविनाशी है,
इसके ध्यान के प्रताप से तत्काल चिन्ता नष्ट हो जाती है । फ्र ॐ फ ४- ३६६. देह तो बड़े प्रयत्न से मेटने पर भी मुश्किल से मिटता, इसकी रक्षा की क्या चिन्ता करना, अपने कर्तव्य में लगे जावा ।
फॐ फ