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३४ पुरुषार्थ
१-२६. वीर अपनी प्रतिज्ञा को निभाता है, दीन प्रतिज्ञा से
च्युत हो जाता।
२-२६६. मोक्षमार्ग पुरुषार्थ से ही सिद्ध होता क्योंकि मोक्ष कर्म के उदय से याने भाग्य से नहीं होता, किन्तु कर्म के प्रभाव से सिद्ध होता अतः परमात्म गुण स्मरण या आत्मस्वरूपलीन पुरुषार्थ किये जाओ, अन्य चिंता या शंका मत करो।
३-४०१. मनोहर ! तुम ऐसा पुरुषार्थ और भावना करो जो
मेरौ उपयोगभूमि पर विषय कषाय राग विरोध का अधिकार न होने पाये, अपने उपयोग को निरापद सोचो और बनायो।
४-४१४. हे सुखैषी ! कुछ मत सोचो, कुछ मत बोलो, कुछ मत
करो, क्योंकि अनाकुलतारूपसुखान्वित अलौकिक, गम्य