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[ ६ ] संकलन विपय रूप में कर दिया गया है और कल्पनायें भी ४० हो गई हैं, जिसमें प्रत्येक ही अपने में अपूर्व है। धीरे धीरे एक कल्पना को पढ़ो, फिर कुछ समय तक उस पर विचार
और मनन करो, अवश्य ही शान्ति प्राप्त होगी। ___ अन्त में मेरा तो यही कहना है कि यह छोटी २ कल्पनायें नहीं है, परन्तु अष्ट कर्म रूपी ईधन को जलाने के लिये विशाल अग्नि को एक चिनगारी मात्र है। नित्यप्रति इनका पाठ करो, मनन करो, अपने जीवन में उतारो, व्यवहार में लाओ और शोब ही देखोगे कि कैसे सुख और शान्ति आपको प्राप्त नहीं होती और कैसे आपका कल्याण नहीं होता। अगर पाठकगण इन कल्पनाओं को उसी ढंग से पढ़े जिस ढंग से हमारे लेखक महोदय के हृदय में आई थी (अर्थात् कहीं २ आश्चर्य से, कहीं कही झिझक, से कहीं एक एक कर, कही २ टूटी धारा सी दो ऐसे) तो विशेप रहम्य इन कल्पनाओं मे प्रतीत होगा, और विशेष रुचि होगी आत्मकल्याण करने की। हमारे लेखक महोदय ने इस ग्रन्थ की रचना करके हमारा बहुत कल्याण किया है। मेरी तो यही भावना है कि पूज्य श्री १०५ क्षुल्लक वर्णी मनोहरलाल जी चिरायु हों और स्वस्थ रहें और हमारा सदैव मार्ग-प्रदर्शन करते रहें। कार्तिक पूर्णिमा ! ब्र. जीवानन्द जैन वीरनिर्वाण स० २४७८ अध्यक्ष-सहजानंद सत्संग सेवा समिति