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१६ कषाय
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१-२५६. अात्मन् । तेरे शत्रु हैं-विषय और कषाय, पर वस्तु
कोई शत्रु नहीं, पर से हानि नहीं, हानि संकल्प विकल्प से है। क्रोध करना है तो विषय कषाय या संकल्प विकल्प से करो।
२-३४२. विकृत भाव ( राग द्वष आदि विषय कषाय) का
आदर ही संसार का मूल है ।
३--३४४. पाप से पुष्य तभी भला है जब उस में अहंकार न
हो, यदि अहंकार है तब चाहे पुण्य हो या पाप, संसार विषवृक्ष का बीज ही है।
ॐ ॐ + ४-३०२. कवाय से हानि तो स्वयं की हो रही, पर का कुछ
नहीं बिगड़ता, सुख चाहो तो सब घटनायें भूल जाओ, ज्ञानमय निजात्मा पर दृष्टि दो।
ॐ ॐ )