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अध्याय - ४
सारस्वतादित्यवयरुणगर्दतोयतुषिताव्याबाधारिष्टाश्च
॥२५॥
लौकान्तिक देवों के आठ भेद हैं:- 1. सारस्वत, 2. आदित्य, 3. वह्नि, 4. अरुण, 5. गर्दतोय, 6. तुषित, 7. अव्याबाध
और 8. अरिष्ट - ये देव ब्रह्मलोक की ईशान इत्यादि आठ दिशाओं में रहते हैं।
They are Sarasvata, Aditya, Vahni, Aruna, Gardatoya, Tuşita, Avyābādha and Arişta (groups).
विजयादिषु द्विचरमाः ॥२६॥ विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और अनुदिश विमानों के अहमिन्द्र द्विचरमा होते हैं अर्थात् मनुष्य के दो जन्म (भव) धारण करके अवश्य ही मोक्ष जाते हैं (ये सभी जीव सम्यग्दृष्टि ही होते हैं)।
In Vijaya and the others the devas are of two final births.
औपपादिकमनुष्येभ्यः शेषास्तिर्यग्योनयः ॥२७॥ उपपाद जन्म वाले (देव तथा नारकी) और मनुष्यों के अतिरिक्त बाकी बचे हुए तिर्यञ्च योनि वाले ही हैं।
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