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अध्याय -९
[उत्तमक्षमामार्दवार्जवशौचसत्यसंयमतपस्त्यागाकिञ्चन्यब्रह्मचर्याणि ] उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन्य और उत्तम ब्रह्मचर्य – ये दस [धर्मः] धर्म हैं।
Supreme forbearance, modesty, straightforwardness, purity, truthfulness, self-restraint, austerity, renunciation, non-attachment, and celibacy constitute virtue or duty.
अनित्याशरणसंसारैकत्वान्यत्वाशुच्यास्त्रवसंवरनिर्जरालोकबोधिदुर्लभधर्मस्वाख्यातत्त्वानुचिन्तनमनुप्रेक्षाः ॥७॥ [अनित्याशरणसंसारैकत्वान्यत्वाशुच्यास्त्रवसंवरनिर्जरालोकबोधिदुर्लभधर्मस्वाख्यातत्त्वानुचिन्तनम् ] अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आस्रव, संवर, निर्जरा, लोक, बोधिदुर्लभ और धर्म - इन बारह के स्वरूप का बारम्बार चिन्तवन करना सो [अनुप्रेक्षाः] अनुप्रेक्षा है।
Reflection is meditating on transitoriness, helplessness, transmigration, loneliness, distinctness, impurity, influx, stoppage, dissociation, the universe, rarity of enlightenment, and the truth proclaimed by religion.
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