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-अन्मति-तीर्थ
कान्मति-तीर्थ
किया है । एक विद्यार्थिनीने स्वयं भगवान महावीर को ही पत्रद्वारा आमन्त्रित किया है। चयन किये हुए निबन्धों में से खास उल्लेखनीय निबन्ध हम यहाँ सम्पादकीय संस्कार के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं।
हम चाहते हैं कि हर एक जैनी इसे पढ़ें और इस पर गौर करें !!!
सूत्रकृतांग-अध्ययन के विविध आयाम
(१) प्रस्तावना अर्धमागधी आगमों का शैक्षणिक स्तर पर अध्ययन - यह सन्मति-तीर्थ संस्था की विशेषता है । जैन तत्त्वज्ञान एवं प्राकृत के अध्ययन से जिनकी बौद्धिक क्षमता तराशी गयी है ऐसे लगभग ७० जिज्ञासु व्यक्ति सन्मति के इस पाठ्यक्रम का लाभ उठाते हैं। पूरे साल भर सूत्रानुसारी एवं शब्दानुसारी अध्ययन करके कक्षा में कई सम्बन्धित विषयोंपर समीक्षा एवं चर्चा भी होती रहती है । वार्षिक परीक्षा में उस चर्चा में से कोई एक विषय चुनकर हर एक विद्यार्थी को एक एक शोधपरक लघुनिबन्ध लिखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है ।
पिछले साल आचारांग के दोनों श्रुतस्कन्धों पर आधारित मूलभूत चिन्तन विशेषांक सन्मति-तीर्थ वार्षिक पत्रिका के तौर पर सम्पादित किया गया । २०१२ का सन्मति-तीर्थ वार्षिक का विशेषांक सूत्रकृतांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध पर आधारित शोधनिबन्धों के जरिए प्रस्तुत किया है।
आरम्भ में निबन्धलेखकों के नाम एवं उनके विषय दिये हैं । इससे मालूम होता है कि स्त्री-परिज्ञा एवं ग्रन्थ इन दो अध्ययनों पर आधारित निबन्धों की संख्या ज्यादा है । 'धर्म' और 'आदानीय' ये अध्ययन भी काफी विद्यार्थीप्रिय हैं। नरकविभक्ति अध्ययनपर आधारित परस्परविरोध दर्शानेवाले दो निबन्ध लिखे गये। एक विद्यार्थिनी ने अर्धमागधी भाषा में अध्ययन का सार देने का प्रयास किया । तीन-चार विद्यार्थियों ने कविता के माध्यम से अपने चिन्तन का अनूठा प्रस्तुतीकरण