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पुरुषार्थसिद्ध्युपाय नातिव्याप्तिश्च तयोः प्रमत्तयोगैककारणविरोधात् । अपि कर्मानुग्रहणे नीरागाणामविद्यमानत्वात् ॥
(105)
अन्वयार्थ - (प्रमत्तयोगैककारणविरोधात्) प्रमाद योगरूप एक कारण का विरोध होने से (अपि) और (कर्मानुग्रहणे) कर्म के ग्रहण करने में (नीरागाणाम् ) वीतराग मुनियों के (अविद्यमानत्वात् ) प्रमाद योग का अभाव होने से (तयौः) उन चोरी और हिंसा में (अतिव्याप्तिश्च न) अतिव्याप्ति भी नहीं है।
105. There is no overlapping either (taking something without passion is not himsā). Certainly, no himsā is involved when passionless (higher order) saints take in karmic molecules since they are not driven by passion.
असमर्था ये कर्तुं निपानतोयादिहरणविनिवृत्तिम् । तैरपि समस्तमपरं नित्यमदत्तं परित्याज्यम् ॥
(106)
अन्वयार्थ - (ये) जो पुरुष (निपानतोयादिहरणविनिवृत्तिम् ) कूप-जल आदि के हरण करने की निवृत्ति को (कर्तुं असमर्था) करने के लिये असमर्थ हैं (तैः अपि) उन पुरुषों के द्वारा भी ( अपरं समस्तम् अदत्तं) दूसरा समस्त बिना दिया हुआ द्रव्य (नित्यम् ) सदा (परित्याज्यम्) छोड़ देना चाहिये।
106. Those who are not able to refrain from taking well-water etc. (although free of charge, but, strictly speaking, not given to them), should always desist from taking anything else that is not given to them.
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