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पुरुषार्थसिद्धयुपाय Right faith, right knowledge, and right conduct (together) constitute the path to liberation.
तत्रादौ सम्यक्त्वं समुपाश्रयणीयमखिलयत्नेन । तस्मिन् सत्येव यतो भवति ज्ञानं चरित्रं च ॥
(21)
अन्वयार्थ - (तत्र) उन तीनों में (आदौ) पहले (अखिलयत्नेन) संपूर्ण प्रयत्नों से (सम्यक्त्वं ) सम्यग्दर्शन (समुपाश्रयणीयम्) भले प्रकार प्राप्त करना चाहिए (यतः) क्योंकि (तस्मिन् सति एव) उस सम्यग्दर्शन के होने पर ही (ज्ञान) सम्यग्ज्ञान (च) और (चरित्रं ) सम्यक्चारित्र ( भवति ) होता है।
21. Out of the three constituents of the path to liberation mentioned above, sincere efforts should be made to first acquire right faith (samyagdarśana). Only on the acquisition of right faith can knowledge and conduct become right knowledge (samyagjńāna) and right conduct (samyakchāritra).
जीवाजीवादीनां तत्त्वानां सदैव कर्तव्यम् । श्रद्धानं विपरीताभिनिवेशविविक्तमात्मरूपं तत् ॥
(22)
अन्वयार्थ - (जीवाजीवादीनां) जीव-अजीव आदिक (तत्त्वानां) तत्त्वों का (विपरीताभिनिवेशविविक्तम् ) मिथ्या अभिप्रायरहित-मिथ्याज्ञानरहित (सदैव) सदा ही (श्रद्धानं) श्रद्धान-विश्वास-अभिरूचि-प्रतीति (कर्तव्यम्) करना चाहिये, (तत्) वही श्रद्धान (आत्मरूपं) आत्मा का स्वरूप है, अर्थात् आत्मा से भिन्न पदार्थ नहीं है।
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