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पुरुषार्थसिद्ध्युपाय
points of view and gets unbiased towards any of these, he only gets the full benefit of the teachings.
अस्ति पुरुषश्चिदात्मा विवर्जितः स्पर्शगन्धरसवर्णैः । गुणपर्ययसमवेतः समाहितः समुदयव्ययध्रौव्यैः ॥
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अन्वयार्थ - ( स्पर्शगन्धरसवर्णैः ) स्पर्श-रस- गन्ध-वर्ण से (विवर्जितः ) रहित ( गुणपर्ययसमवेतः) गुण और पर्यायों से विशिष्ट ( समुदयव्ययध्रौव्यैः ) उत्पाद-व्यय- - ध्रौव्य से ( समाहितः ) सहित (चिदात्मा ) चैतन्यमय आत्मा (पुरुषः ) पुरुष ( अस्ति ) है।
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The soul is pure consciousness, devoid of touch, taste, smell, and colour, has qualities and modes, and is characterized by origination, disappearance, and permanence.
परिणममानो नित्यं ज्ञानविवर्तैरनादिसन्तत्या ।
परिणामानां स्वेषां स भवति कर्ता च भोक्ता च ॥ (10)
अन्वयार्थ - ( सः ) वह जीव ( नित्यं ) सदा ( अनादिसन्तत्या ) अनादि-संतति से (ज्ञानविवर्तैः ) ज्ञानदि के विकारों से ( परिणममानः ) परिणमन करता हुआ (स्वेषां ) अपने (परिणामानां ) परिणामों का (कर्ता) करने वाला (च) और (भोक्ता ) भोगने वाला (च) भी (भवति) होता है।
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