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श्रित्वा विविक्तवसतिं समस्तसावद्ययोगमपनीय । सर्वेन्द्रियार्थविरतः कायमनोवचनगुप्तिभिस्तिष्ठेत् ॥
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पुरुषार्थसिद्ध्युपाय
अन्वयार्थ
(विविक्तवसतिं ) एकान्त ( श्रित्वा) आश्रय करके ( समस्त
दूर
सावद्ययोगम् अपनीय ) समस्त पाप पञ्च हिंसादि पाप योगों को करके (सर्वेन्द्रियार्थविरतः) सर्व इन्द्रियों के विषयों से विरक्त होता हुआ (कायमनोवचनगुप्तिभिः ) कायगुप्ति, मनोगुप्ति, वचनगुप्ति को धारण करके ( तिष्ठेत्) ठहरें।
(153)
153. One should retreat to a secluded place, renounce all sinful activities, abstain from indulgence in all sense-objects, and observe proper restraint over body, mind, and speech.
धर्मध्यानशक्तो वासरमतिवाह्य विहितसान्ध्यविधिः । शुचिसंस्तरे त्रियामां गमयेत्स्वाध्यायजितनिद्रः ॥
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(154)
अन्वयार्थ - ( धर्मध्यानशक्तः ) धर्मध्यान में तल्लीन हो ( वासरम् अतिवाह्य ) उस दिन को बितावें (विहितसान्ध्यविधिः ) पीछे सांयकाल में जो कुछ विधि है उसे पूरा करें, पश्चात् ( स्वाध्यायजितनिद्रः ) स्वाध्याय से निद्रा पर विजय पाकर (शुचिसंस्तरे) पवित्र आसन पर ( त्रियामां गमयेत् ) रात्रि बितावें ।
154. The day should be spent in virtuous contemplation, and the evening in performance of meditation (sāmāyika). Subjugating sleep through self-study, the night should be spent on a clean mat.
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