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पुरुषार्थसिद्ध्युपाय फेंकना, इन कार्यों को (च) और (दलफलकुसुमोच्चयान् ) पत्ते, फल, फूल आदि को तोड़ना (अपि) भी (निःकारणं न कुर्यात् ) बिना कारण नहीं करना चाहिये।
143. Digging the earth, uprooting trees, trampling lawns, sprinkling water, and also plucking leaves, fruits and flowers, should not be done without purpose.
असिधेनुविषहुताशनलाङ्गलकरवालकार्मुकादीनाम् । वितरणमुपकरणानां हिंसायाः परिहरेद्यत्नात् ॥
(144)
अन्वयार्थ - (असिधेनुविषहुताशनलाङ्गलकरवालकार्मुकादीनाम् ) असितलवार, धेनु-छुरी, विष-जहर, हुताशन-अग्नि, लाङ्गल-हल, करवाल-खड्ग, कार्मुक-धनुष, आदि (कुंत, क्रकच, मुद्गर, पाश-जंजीर, कांटा, कुश, रस्सा, पींजरा, कठैरा आदि वस्तुयें भी समझना चाहियें) (हिंसायाः उपकरणानां) जो हिंसा के उपकरण-सामग्री हैं इनका (वितरणम् ) दूसरों को देना (यत्नात् परिहरेत् ) प्रयत्न-पूर्वक बंद कर देना चाहिये।
144. Make efforts not to pass on instruments of hiņsā, such as knife, poison, fire, plough, sword, and bow, to others.
रागादिवर्द्धनानां दुष्टकथानामबोधबहुलानाम् । न कदाचन कुर्वीत श्रवणार्जनशिक्षणादीनि ॥
(145)
अन्वयार्थ - (रागादिवर्द्धनानां) रागादि को बढ़ाने वाली (अबोधबहुलानाम् ) अज्ञान से भरी हुई (दुष्ट कथानाम् ) दुष्ट कथाओं का (श्रवणार्जन
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