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पुरुषार्थसिद्धयुपाय (हिंसाम् ) हिंसा को (कथं) कैसे (परिहरेत् ) बचा सकता है? अर्थात् नहीं बचा सकता।
133. And, how can one who eats food without the light of the sun, albeit a lamp may have been lighted, avoid hiņsā of minute beings which get into food?
किं वा बहुप्रलपितैरिति सिद्धं यो मनोवचनकायैः । परिहरति रात्रिभुक्ति सततमहिंसां स पालयति ॥
(134)
अन्वयार्थ - (बहुप्रलपितैः) बहुत सा कहने से (किं वा) क्या फायदा है, (इति) इस प्रकार ऊपर के समस्त विवेचन से (सिद्धं) यह बात भली-भांति सिद्ध हो जाती है कि (यः मनोवचनकायैः) जो मन, वचन, काय से (रात्रिभुक्ति परिहरति) रात्रि भोजन का त्याग करता है (सः) वह (सततम् अहिंसा पालयति) निरन्तर अहिंसाव्रत को पालता है।
134. Why to go on talking unnecessarily. A person who renounces night-eating through the mind, the organ of speech, and the body, observes ahimsā perpetually.
इत्यत्र त्रितयात्मनि मार्गे मोक्षस्य ये स्वहितकामाः । अनुपरतं प्रयतन्ते प्रयान्ति ते मुक्तिमचिरेण ॥
(135)
अन्वयार्थ - (ये स्वहितकामाः) जो अपने हित के चाहने वाले पुरुष (इति अत्र त्रितयात्मनि मोक्षस्य मार्गे) इस प्रकार सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र इन तीन स्वरूप मोक्ष के मार्ग में (अनुपरतं प्रयतन्ते) निरन्तर प्रयत्न करते हैं (ते अचिरेण ) वे शीघ्र ही ( मुक्तिम् प्रयान्ति ) मोक्ष को प्राप्त होते हैं।
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