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Blessing from Pujya Manak Muniji Maharaj Saheb
-ऊहीं अर्ह नमः'महाशक्तिशाली महातीर्थ श्री प्रापद का पुनः अभ्युदय"
'पूज्य गुरुदेव श्री भनक मुनि जी भएशज' समय की शक्ति अनन्त होती है। समय की परतों के नीचे इतिहास के अनेक तथ्य, घटनाएं, स्थान आदि लुप हो जाते हैं,गुप्त हो जाते हैं। ऐसा ही एक स्थान,जो कि केवल जैन इतिहस-परंपरा आपेतु पूरी जानव जाति के इतिहास और सभ्यता से जुड़ा हुमा अति महत्वपूर्ण स्थान श्री अष्टापदपर्वत सहस्राब्दियों के दीर्घ अन्तराल तथा भौगोलिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों के कारण लुप्त- गुप्त हो गया।इस युग की मानव सभ्यता के आदिकत, आदि महामानव , आदि तीर्थकर भगवान श्री आदिनाथ का निर्माण कल्याणक स्थान है यह महातीर्थ अष्टापदा शास्त्रों एवं ऐतिहासिक ग्रयों के अनेक पृष्ठों परअल्लारवंत, संदार्जित,परिभाषित यह अष्रापद महातीर्थ काल के दीर्घ प्रवाह में उपेक्षा ब उदासीनता का शिकार हो गया। यही कारण है कि अतिपावन इस महाशक्ति के केन्द्र पुण्यतीर्थ को जानने-खोजने का सामूहिक सार्थक प्रयास शायद अभी तक नहीं हुआ।
जैन परंपराकै अति महत्वपूर्ण इस महातीर्थ आष्टापद को खोजने-जानने का गुरुतर दायित्व उठाया है जैन सेन्टर ऑफ अमेरिका, न्यूयार्क ने और इसको क्रियान्वित किया है दृढसंकल्प और लगन के धनी डा.रजनीकान्त शाह व उनकी टीम नौ वर्षों के - सतत अनुसन्धान खोज- श्रम से डा. शाह और उनकी टीमने सदियों से उपेक्षितइस महातीर्थ को पुनः प्रतिष्ठित-परिलाक्षत करने की दिशा में प्रशंसनीय- अनुमोदनीय प्रयास किया है। इस महान कार्य में जिनका भी प्रत्यक्ष-परोक्ष योगदान रहा हैसब धन्यवाद के पात्र हैनए शतिहास का सर्जन करने के लिए शत-शत बघारी
शास्त्रों-राज्यों के अनेक सन्दनी से परिपूर्ण श्री अष्टापद महातीर्थ गत्य का प्रथम भाग बहुत सुन्दर-सुसाज्जत आकार में प्रकाशित हो गया है। अनुसन्धान परक यह दूसरा भाग पाठकों के सामने आ रहा है। स्वल्प समय में इतने बड़े ग्रन्थ का संकलनसंपादन-प्रकाशन करने के लिए इस परिकल्पना -- परियोजना के पुरोधा डा रजनीकान्त शाह व उनकी समार्पतीम को बहुत - बहुत साधुवाद - आशीर्वादा
विद्वानों, जिज्ञासुओं, अनुसन्धानकताओं और श्रद्धालुओं के लिए ये गुज्य अष्ापद् जी के बारे में नई दिशा दर्शक बनेंगे यही विश्वास और शुभकामना ।
- ओम् शान्तिः शान्तिःशाति:--