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________________ Shri Ashtapad Maha Tirth के संस्थापक थे, किन्तु सत्य यह है, कि इसका प्रथम प्रचार ऋषभदेव ने किया और उसकी पुष्टि में प्रमाणों का अभाव नहीं है।१६ कितने ही पुरातत्त्वविज्ञ तीर्थङ्करों के सम्बन्ध में अनुसंधान कर जैन धर्म के सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखते हैं कि निस्संदेह जैन धर्म ही सम्पूर्ण विश्व में एक सच्चा धर्म है और यही समस्त मानवों का आदि धर्म है।१७ प्रोफेसर तान-युन-शान के शब्दों में 'अहिंसा का प्रचार वैज्ञानिक तथा स्पष्ट रूप से जैन तीर्थङ्करों द्वारा किया गया है जिसमें अन्तिम महावीर वर्धमान थे।' केन्द्रीय धारा सभा के भूतपूर्व अध्यक्ष षण्मुख चेट्टी का यह अभिमत है कि भारत के जैनी ही यहाँ के मूलनिवासी हैं क्योंकि आर्य लोग जब बाहर से भारत में आये थे उस समय भारत में जो द्रवीड़ लोग रहते थे उनका धर्म जैन धर्म ही था। महामहोपाध्याय डॉ. शतीशचन्द्रजी विद्याभूषण, प्रिंसिपल संस्कृत कालेज, कलकत्ता का यह मन्तव्य है कि जैन धर्म तब से प्रचलित है जब से संसार में सृष्टि का आरम्भ हुआ है। मुझे इसमें किसी प्रकार का उज्र नहीं है कि वह वेदान्त आदि दर्शनों से पूर्व का है। लोकमान्य बालगंगाधर तिलक लिखते हैं- ग्रन्थों एवं सामाजिक आख्यानों से जाना जाता है, कि जैन धर्म अनादि है-यह विषय निर्विवाद एवं मत-भेद से रहित है। सुतरां, इस विषय में इतिहास के सबल प्रमाण हैं...... जैन धर्म प्राचीनता में प्रथम नम्बर है। प्रचलित धर्मों में जो प्राचीन धर्म हैं, उनमें भी यह प्राचीन है।'१८ महामहोपाध्याय पं. राम मिश्र शास्त्री जैन धर्म की प्राचीनता को सप्रमाण प्रस्तुत करते हुए लिखते हैं- "जैन धर्म तब से प्रचलित हुआ जब से सृष्टि का प्रारम्भ हुआ। इसमें मुझे किसी भी प्रकार की आपत्ति नहीं है, कि जैन धर्म वेदान्तादि दर्शनों से पूर्व का है।" सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ प्रो. मेक्समूलर जैन धर्म को अन्य धर्म की शाखा न मान कर लिखते हैं“विशेषतः प्राचीन भारत में किसी भी धर्मान्तर से कुछ ग्रहण करके एक नूतन धर्म प्रचार करने की प्रथा ही नहीं थी। जैन धर्म हिन्दूधर्म से सर्वथा स्वतन्त्र है, वह उसकी शाखा या रूपान्तर नहीं है।' पाश्चात्य विचारक मेजर जनरल जे. सी. आर. फलांग, एफ. आर. एस. ई. ने लिखा है कि"बौद्ध धर्म ने प्राचीन ईसाई धर्म को कौन से ऐतिहासिक साधनों से प्रभावित किया इसकी गवेषणा करते हुए यह निःसन्देह स्वीकार करना होगा कि इस धर्म ने जैन धर्म को स्वीकार किया था, जो वास्तव में अरबों, खरबों वर्षों से करोड़ों मनुष्यों का प्राचीन धर्म था।१९ जैन धर्म के आरम्भ को जान पाना असम्भव है।२० भारतवर्ष का सबसे प्राचीन धर्म जैनधर्म ही है।"२१ सन १९५६ में जापान में जिमुजु विश्वधर्म परिषद का आयोजन हुआ था। उस आयोजन में बर्मा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति मा. यूचान, तुनआंग ने अपने अध्यक्षीय अभिभाषण में कहा-"जैन १६ जैनधर्म की प्राचीनता, पृ. ८ १७ Yea, his (Jain) religion is the only true one uponearth, the prinitive faith of all mankind. - Description of the Character, Manners and Customs of the people of India and of their institutions religious and civil. १८ अहिंसा वाणी, वर्ष ६, अंक ४, जुलाई ५६, पृ० १९७-१९८ 39 Through What Historical channels did Buddhism influence early Christianity, We must widen this enquiry by making it embrace Jainism the undoubtedly prior faith of comparative religion. -Intro, p. 1 २० It is impossible to find a beginning for Jainism -lbid., p. 13 २१ Jainism thus appears an earliest faith of India. -Ibid., p. 15 Rushabhdev : Ek Parishilan -6270
SR No.009857
Book TitleAshtapad Maha Tirth 01 Page 249 to 335
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajnikant Shah, Kumarpal Desai
PublisherUSA Jain Center America NY
Publication Year2011
Total Pages87
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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