SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ आवश्यक नियुक्ति । प्रास्ताविक : अवश्य करणीय अनुष्ठान आवश्यक कहलाता है। आवश्यक की संख्या सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वंदना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान इस प्रकार छह है। जिस ग्रन्थ में यह छह आवश्यक की विस्तृत रुप से चर्चा की गई है वह आवश्यक सूत्र है। इसके कर्ता चौदपूर्वधर श्री भद्रबाहुस्वामी हैं। [आवश्यक नियुक्ति-खण्ड-१ संपाः डॉ. समणी कुसुमप्रज्ञा] इस ग्रंथ में भगवान ऋषभदेव का अष्टापद पर निर्वाण विषयक उल्लेख प्राप्त होता है। जो इस प्रकार है२०५. तित्थगराणं पढमो, उसभरिसी' विहरितो निरूवसग्गं । अट्ठावओ नगवरो, अग्गाभूमी जिणवरस्स' ।। तीर्थङ्करों में भगवान् ऋषभ ही प्रथम तीर्थङ्कर थे, जिनका विहार निरूपसर्ग रहा। जिनेश्वर देव की अग्रभूमिनिर्वाण भूमि अष्टापद पर्वत था। २२८. राया आदिच्चजसे, महाजसे अतिबले स बलभद्दे । बलविरिए कत्तविरिऍ, जलविरिए दंडविरिए य ।।* वे आठ पुरुष ये हैं- राजा आदित्ययश, महायश, अतिबल, बलभद्र, बलवीर्य, कार्तवीर्य, जलवीर्य तथा दंडवीर्य । २२८/१ एतेहि अद्धभरहं, सयलं भुत्तं सिरेण धरिओ य। पवरो जिणिंदमउडो, सेसेहि न चाइओ वोढुं ।। इन्होंने समस्त अर्थ भरत पर राज्य किया, उसका उपभोग किया । इन्होंने इन्द्र द्वारा आनीत प्रथम जितेन्द्र का मुकुट शिर पर धारण किया । शेष नरपति उसे वहन करने में समर्थ नहीं हुए । १. पल्लगा (य), पण्हवा (स्वो), पाहगा (को)। २. णुसट्ठा (ब, स, स्वो, को)। ३. स्वो. २६३/१७०२ । सिरी (म, रा, ला, को) | * स्थानाङ्गसूत्र के अष्टम स्थान के सू. ६१७ में जो आठ सिद्ध, बुद्ध, मुक्त और परिनिर्वाण पाये हैं उन आदित्ययश विगेरे का उल्लेख मिलता है : (सू.६१७) भरहस्स णं रन्नो चाउरंतचक्कवट्टिस्स अट्ठ पुरिसजुगाई अणुबद्धं सिद्धाइं जाव सव्वदुक्खप्पहीणाई, तंजहा-आदिच्चजसे, महाजसे, अतिबले, महाबले, तेतवीरिते, कत्तवीरिते, दंववीरिते, जलवीरिते । (टी.) अनन्तरोक्तसूक्ष्मविषयसंयममासेव्य ये अष्टकतया सिद्धास्तानाह-भरहस्सेत्यादि कण्ठ्यम्, किन्तु पुरिसजुगाई ति पुरुषा युगानीव कालविशेषा इव कमवृत्तित्वात् पुरुषयुगानि, अनुबद्धं सन्ततम् यावत्करणात् 'बुद्धाइं मुक्काई परिनिव्वुडाई' ति, एतेषां चाऽऽदित्ययशः प्रभृतीनामिहोक्तक्रमस्यान्यथात्वमप्युपलभ्यते, Aavashyak Niryukti Vol. XX Ch. 150-A, Pg. 8533-8543 Aavashyak Niryukti - 10
SR No.009853
Book TitleAshtapad Maha Tirth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajnikant Shah, Kumarpal Desai
PublisherUSA Jain Center America NY
Publication Year2011
Total Pages528
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size178 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy