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Shri Ashtapad Maha Tirth
(१६) भगवान् ऋषभदेव को केवलज्ञान । (१७) माता मरूदेवी को केवलज्ञान और मोक्ष । (१८) संघ स्थापना। (१९) भरत को दिग्विजय । (२०) सुन्दरी की प्रव्रज्या। (२१) भरत-बाहुबली के दृष्टियुद्ध, बाहुयुद्ध एवं मुष्टियुद्ध का वर्णन । (२२) बाहुबली को वैराग्य, दीक्षा और केवलज्ञान। (२३) मरीचि द्वारा स्वेच्छानुसार परिव्राजक वेष (लिंग) की स्थापना। (२४) ब्राह्मणोत्पत्ति। (२५) भगवान् ऋषभदेव का परिनिर्वाण ।
(२६) सम्राट भरत को आदर्श भवन में केवलज्ञान । * प्राकृत काव्य साहित्य में ऋषभदेव : १. वसुदेव-हिंडी३९
वसुदेव-हिंडी का भारतीय कथा साहित्य में ही नहीं अपितु विश्व के कथा साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैसे गुणाढ्य ने पैशाची भाषा में नरवाहनदत्त की कथा लिखी वैसे ही संघदासगणी ने प्राकृत भाषा में वसुदेव के भ्रमण की कथा लिखी। यह कथा (प्रथम खण्ड) जैन साहित्य के उपलब्ध सर्व कथाग्रन्थों में प्राचीनतम है। इसकी भाषा आर्ष जैन महाराष्ट्री प्राकृत है। मुख्यतः यह गद्यमय है, तथापि कहींकहीं पद्यात्मक शैली का भी प्रयोग किया गया है। इसमें श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव के अनेक वर्षों के परिभ्रमण
और उनका अनेक कन्याओं के साथ विवाह का वर्णन किया गया है। जिस-जिस कन्या के साथ विवाह हुआ उस-उस के नाम से मुख्य कथा के विभागों को 'लंभक' कहा गया है।
वसुदेव-हिण्डी के चतुर्थ 'नीलयशा लंभक' एवं 'सोमश्री' लंभक में श्री ऋषभदेव का चरित्र चित्रण किया गया है। उसमें निम्न घटनाओं का समावेश है
(१) मरूदेवी का स्वप्न-दर्शन। (२) ऋषभदेव का जन्म। (३) देवेन्द्रों और दिशाकुमारियों द्वारा भगवान् का जन्मोत्सव। (४) ऋषभदेव का राज्याभिषेक।
ऋषभदेव की दीक्षा।
नमि-विनमि को विद्याधर ऋद्धि की प्राप्ति। (७)
ऋषभदेव का श्रेयांस के यहाँ पारणा।
ऋषभदव प (८) सोमप्रभ का श्रेयांस को प्रश्न पूछना। (९) श्रेयांस का प्रत्युत्तर में ऋषभदेव के पूर्वभव का वृत्तान्त। (१०) महाबल और स्वयंबुद्ध के पूर्वजों का वृत्तान्त । (११) निर्नामिका की कथा । (१२) आर्यदेव की उत्पत्ति । (१३) श्री ऋषभदेव का निर्वाण ।
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वसुदेवहिण्डी, प्रथम खण्ड, सम्पादक- मुनि पुण्यविजयजी महाराज, श्री जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर, ई. सन् १९३१ ।
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Rushabhdev : Ek Parishilan