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. जैन साहित्य में ऋषभदेव
* आगम साहित्य में ऋषभदेव * नियुक्ति साहित्य में ऋषभदेव * भाष्य साहित्य में ऋषभदेव * चूर्णि साहित्य में ऋषभदेव * प्राकृत काव्य साहित्य में ऋषभदेव * संस्कृत साहित्य में ऋषभदेव * आधुनिक साहित्य में ऋषभदेव
भारतवर्ष के जिन महापुरुषों का मानव-जाति के विचारों पर स्थायी प्रभाव पड़ा है, उनमें भगवान् श्री ऋषभदेव का स्थान प्रमुख है। उनके अप्रतिम व्यक्तित्व और अभूतपूर्व कृतित्व की छाप जन-जीवन पर बहुत ही गहरी है। आज भी अगणित व्यक्तियों का जीवन उनके विमल विचारों से प्रभावित व अनुप्रेरित है। उनके हृदयाकाश में चमकते हुए आकाश-दीप की तरह वे सुशोभित हैं। जैन, बौद्ध और वैदिक साहित्य उनकी गौरवगाथा से छलक रहा है। इतिहास और पुरातत्व उनकी यशोगाथा को गा रहा है। उनका विराट व्यक्तित्व कभी भी देश, काल, सम्प्रदाय, पंथ, प्रान्त और जाति के संकीर्ण घेरे में आबद्ध नहीं रहा। जैन साहित्य में वे आद्य तीर्थङ्करों के रूप में उपास्य रहे हैं तो वैदिक साहित्य में उनके विविध रूप प्राप्त होते हैं। कहीं पर उन्हें ब्रह्मा मानकर उपासना की गई है तो कहीं पर विष्णु और कहीं पर महेश्वर का रूप मानकर अर्चना की गई है। कहीं पर अग्नि, कहीं पर केशी, कहीं पर हिरण्यगर्भ और कहीं पर वातरशना के रूप में उल्लेख है। बौद्ध साहित्य में उनका ज्योतिर्धर व्यक्तित्व के रूप में उल्लेख हुआ है। इस्लाम धर्म में जिनका आदम बाबा के रूप में स्मरण किया गया है जापानी जिसे रोकशव' कहकर पुकारते हैं। मध्य एशिया में वो ‘बाड आल' के नाम से उल्लिखित हैं। फणिक उनके लिए रेशेफ' शब्द का प्रयोग करते हैं। पाश्चात्य देशों में भी उनकी ख्याति कही पर कृषि के देवता, कहीं पर भूमि के देवता और कहीं पर 'सूर्यदेव' के रूप में विश्रुत रही है। वे वस्तुतः मानवता के ज्वलंत कीर्तिस्तम्भ हैं।
भगवान् ऋषभदेव का समय वर्तमान इतिहास की काल-गणना परिधि में नहीं आता। वे प्राग-ऐतिहासिक महापुरुष हैं। उनके अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए पुरातत्त्व तथा जैन तथा जैनेतर साहित्य ही प्रबल प्रमाण है। उन्हीं के प्रकाश में अगले पृष्ठों में चिन्तन किया जा रहा है। सर्वप्रथम जैन साहित्य में जहाँजहाँ पर ऋषभदेव का उल्लेख प्राप्त होता है उस पर अनुशीलन किया जा रहा है। * आगम साहित्य में ऋषभदेव :
१. सूत्रकृतांगसूत्र
आधुनिक भाषा वैज्ञानिकों ने आचारांग व सूत्रकृतांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध को भगवान् महावीर की मूलवाणी के रूप में स्वीकार किया है। आचारांग में भगवान् ऋषभदेव के सम्बन्ध में कुछ भी उल्लेख नहीं मिलता। सूत्रकृतांग का द्वितीय अध्ययन 'वेयालिय' है। इस अध्ययन के सम्बन्ध में यद्यपि मूल आगम
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Rushabhdev : Ek Parishilan