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प्रस्तावना :
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॥ जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन |
पी. एल. वैद्य
जैन पुराणों में महापुराण निःसन्देह सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और विस्तृत है ।
इस ग्रन्थ में लेखिका ने एलोरा की जैन गुफाओं एवं महापुराण की कलापरक सामग्री के तुलनात्मक अध्ययन का यथेष्ट प्रयत्न किया है ।
यहाँ इस लेख में ग्रन्थ के तृतीय अध्याय में से ऋषभनाथ के जीवन से सम्बन्धित कुछ घटनाओं की विस्तारपूर्वक चर्चा की है।
* ऋषभनाथ (या आदिनाथ) :
आदिपुराण में ऋषभनाथ को वृषभदेव कहा गया है जो एक ओर शिव और दूसरी ओर उनके वृषभ लांछन से सम्बन्धित है। ज्ञातव्य है कि ऋषभदेव का लांछन वृषभ है। वृषभदेव वर्तमान अवसर्पिणी काल के २४ तीर्थंकरों में आद्य तीर्थंकर हैं और इन्हीं से जैन धर्म का प्रारम्भ माना जाता है। आद्य तीर्थंकर होने के कारण ही इन्हें आदिनाथ भी कहा गया है।
जैन पुराणों में इनके जीवन, तपश्चरण, केवलज्ञान व धर्मोपदेश के विस्तृत विवरण के साथ ही वैदिक साहित्य जैनेतर पुराणों तथा उपनिषदों आदि में भी इनका उल्लेख हुआ है। पउमचरिय में २४ तीर्थंकरों की वन्दना के प्रसंग में ऋषभनाथ को जिनवरों में वृषभ के समान श्रेष्ठ तथा सिद्धदेव, किन्नर, नाग, असुरपति एवं भवनेन्द्रों के समूह द्वारा पूजित बताया गया है। इसी प्रकार एक अन्य स्थल पर ऋषभनाथ को स्वयंभू, चतुर्मुख, पितामह, भानु, शिव, शंकर, त्रिलोचन, महादेव, विष्णु हिरण्यगर्भ, महेश्वर, ईश्वर रुद्र और स्वयं सम्बुद्ध आदि नामों से देवता एवं मनुष्यों द्वारा वंदित बताया गया है । इन्हें प्रथम नृप, प्रथम जिन, प्रथम केवली, प्रथम तीर्थंकर तथा प्रथम धर्मचक्रवर्ती कहा गया है। शिवपुराण में शिव के आदि तीर्थंकर ऋषभदेव के रूप में अवतार लेने का उल्लेख भी हुआ है।" ऋषभदेव के साथ वृषभ तथा शिव के साथ नन्दी समान रूप से जुड़ा है। इसी प्रकार ऋषभदेव का निर्वाण स्थल कैलाश पर्वत माना
१ हीरालाल जैन, 'भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान', पृ. ११ आदिपुराण, प्रस्तावना, पृ. १३-१४ ।
२
पउमचरिय १.१ २८, ४९ ४.४ ।
३
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति २.३० ।
४
शिवपुराण ४.४७, ४८।
Rushabhdev & Shiv in Jain Mahapuran Vol. IV Ch. 22-B, Pg. 1257-1263 Jain Mahapuran
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