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Shri Ashtapad Maha Tirth
स्नात्रं कर्तुं समायाताः सर्व संताप नाशनम् ।
कर्पूर-कुङ् कुमा दीनां, धारयन्तो जलं बहु ।।१८।। कर्पूर-केशर आदि के पानी को धारण करने वाले बहुत से देव सर्व सन्ताप नाशक स्नात्र-महोत्सव करने के लिए आये हैं।
यथा लक्ष्मी समाक्रान्तं याचमाना निजं पद्म ।
तथा मुक्तिपदं कान्त मनन्त सुख कारणम् ।।१९।। जैसे लोग लक्ष्मी से परिपूर्ण अपने पद याचना करते हैं उसी प्रकार उपरोक्त देव भी सुन्दर अनन्त सुख के कारणभूत मोक्ष पद की याचना करते हैं।
हू हू तुम्बरू नामानौ, तौ वीणा वंश वादकौ।
अनन्त गुण संघातं, गायन्तौ जगतां प्रभोः ।।२०।। तीन लोक के प्रभु के अनन्त गुण समूह को गाने वाले ये हू हू और तुम्बरू नामक वीणा और बंशी बजाने वाले देव हैं।
वाद्यमेकोन पञ्चाशद् भेदभिन्न मनेकथा।
चतुर्विधा अमी देवा वादयन्ति स्व भक्तितः ॥२१॥ ये चारों प्रकार के देव अपनी भक्ति से अनेक प्रकार के भेद से ४९ प्रकार के वाजित्रों को बजाते हैं।
सोऽयं देवी महादेवी! दैत्यारिः शंखवादकः।
नाना रूपाणि बिभ्राण एक कोऽपि सुरेश्वरः ।।२२।। हे महादेवी ! ये शंख बजाने वाले, दैत्यों के शत्रु हैं और एक होने पर भी अनेक रूपों को धारण करने वाले देवताओं के ईश्वरअधिपति इन्द्र हैं।
जगत्त्रयाधिपत्यस्य, हेतु छत्र त्रयं प्रभोः।
अमी च द्वादशादित्या जाता भामण्डलं प्रभोः ।।२३।। ये तीन लोक का स्वामित्व बताने वाले प्रभु के हेतु भूत तीन छत्र हैं और ये बारह सूर्य प्रभू के भामंडल रूप हो गए हैं।
पृष्ठ लग्ना अमी देवा याचन्ते मोक्षमुत्तमम्।
एवं सर्व गुणोपेतः सर्व सिद्धि प्रदायकः ।।२४।। __ ये पीछे रहे हुए देव उत्तम प्रकार के मोक्ष पद को माँगते हैं। इस प्रकार ये प्रभु सर्व गुणों से युक्त और सर्व प्रकार की सिद्धि को देने वाले हैं।
एष एव महादेव! सर्व देव नमस्कृतः।
गोप्याद् गोप्यतरः श्रेष्ठो व्यक्ताव्यक्ततया स्थितः।।२५।। हे महादेवी ! यही प्रभु समस्त देवों द्वारा नमस्कृत हैं, रक्षणीय वस्तुओं में सबसे अधिक रक्षणीय होने से श्रेष्ठ हैं और प्रगट व अप्रगट स्वरूप में स्थित हैं।
आदित्याद्या भूमन्त्येते, यं नमस्कर्तु मुद्यताः। कालो दिवस-रात्रिभ्यां यस्य सेवा विधायकः ॥२६ ।। वर्षा कालोष्ण कालादि शीत कालादि वेष भृत। यत्पूजाऽर्थ कृता धात्रा, आकरा मलयादयः ॥२७॥
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- Adinath Rishabhdev and Ashtapad