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। भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ ।।
उत्तराखण्ड जनपद
क्षेत्र- कैलाश (बद्रीनाथ, कैलाश, अष्टापद), श्रीनगर
अष्टापद
बलभद्र जैन
* निर्वाण क्षेत्र :
अष्टापद निर्वाण क्षेत्र है ।
'अट्ठावयम्मि रिसहो' यह प्राकृत निर्वाण भक्ति की प्रथम गाथा का प्रथम चरण है। इसका अर्थ यह है कि ऋषभदेव भगवान् अष्टापद पर्वत से मुक्त हुए। अष्टापद दूसरा नाम कैलाश है।
हरिवंश पुराण के कर्ता और आचार्य जिनसेन ने भगवान् ऋषभदेव के मुक्ति-गमन से पूर्व कैलाश पर्वत पर ध्यानारूढ़ होने का बड़ा मार्मिक चित्रण किया है।
इत्थं कृत्वा समर्थं भवजलधिजलोत्तारणे भावतीर्थं कल्पान्तस्थायि भूयस्त्रिभुवनहितकृत् क्षेत्रतीर्थं च कर्तुम् । स्वाभाव्यादारुरोह श्रमणगणसुरवातसम्पूज्यपादः कैलासाख्यं महर्धि निषधमिव वृषादित्य इद्ध प्रभांढ्यः ।।
-हरिवंश पुराण, १२-८० अर्थात् मुनिगण और देवों से पूजित चरणों के धारक श्री वृषभ जिनेश्वर संसाररूपी सागर के जल से पार करने में समर्थ रत्नत्रय रूप भावतीर्थ का प्रवर्तन कर कल्पान्त काल तक स्थिर रहनेवाले एवं त्रिभुवन जन हितकारी क्षेत्रतीर्थ को प्रवर्तन करने के लिए स्वभावतः कैलाश पर्वत पर इस तरह आरूढ़ हो गये, जिस तरह देदीप्यमान प्रभा का धारक वृष का सूर्य निषाधाचलपर आरूढ़ होता है। इसके पश्चात् आचार्य ने कैलाशगिरि से भगवान् के मुक्ति-गमन का वर्णन करते हुए लिखा है
तस्मिन्नद्रौ जिनेन्द्रः स्फटिकमणिशिला जालरम्ये निषपण्णो। योगानां सन्निरोधं सह दशभिरथो योगिनां यैः सहस्त्रैः। कृत्वा कृत्वान्तमन्ते चतुरपदमहाकर्मभेदस्य शर्मस्थानं स्थानं स सैद्धं समगमदमलस्रग्धराभ्यय॑मानः ।।१२।८१
Uttarakhand - Ashtapad Vol. xv Ch. 114-C,
Pg. 6695-6707
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Bharat ke Digamber Jain Tirth —
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