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|| अष्टापद महातीर्थ कहाँ है ? ।।
कई बार हम शाखों में अष्टापदजी का नाम सुनते हैं सिद्धगिरी, राणकपुर, कपडवंज, अहमदाबाद आदि T अनेक स्थानों पर अष्टापदजी के मन्दिर के दर्शन करते समय - यह तीर्थ कहाँ होगा ? क्या विभाजित - अलग अलग हो गया होगा ? ऐसी जिज्ञासा होती है । कोई इस तीर्थ को हिमालय में कहता है कोई उत्तर ध्रुव के उस I पार कहता है कोई हरिद्वार तीर्थ के पास बताता है।
दर्शनविजयजी, गुणविजयजी एवं न्यायविजयजी
यह अष्टापद तीर्थ तीसरे आरे में भरत चक्रवर्ती द्वारा बनवाया गया तथा जहाँ २४ तीर्थंकर की स्व-स्व रंग के अनुसार शोभित रत्नों की प्रतिमाजी प्रतिष्ठित कराई गईं तथा जहाँ प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव प्रभु के प्रथम पुत्र ने आठ सीढ़ीयों वाले इस तीर्थ का निर्माण कराया । एक एक पायदान ८ x ४ = ३२ कोस की ऊँचाई वाला है । १ कोस को सामान्य रूप में २.२५ मील मानें तो एक पायदान ३२ x २.२५ = ७२ तथा १ मील का शिखर अर्थात् कुल ७३ मील ऊँचा यह तीर्थ है । जहाँ प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ दादा का निर्वाण हुआ ।
जहाँ महाराजा रावण ने वीणा बजाकर तीर्थंकर नाम कर्म बाँधा । अनन्त लब्धि निधान श्री गौत्तम गणधर ने स्वलब्धि से यात्रा कर मोक्ष गमन के संदेह को दूर कर १५०० तापसों को प्रतिबोध किया (ज्ञान दिया), जहाँ वज्रस्वामीजी ने पूर्व जन्म के देवभव में गौतम गणधर महाराज से प्रश्न पूछे तथा बालीराजा ने इस तीर्थ की रक्षा की थी । ऐसे पवित्र तीर्थ के संबंध में पूज्य श्री (अभयसागर म.सा.) ने अनेक शास्त्रों, ग्रन्थों तथा घटनाओं का गहराई से मनन कर अष्टापदजी का स्थान वर्तमान में कहाँ है उस संबंध में जानकारी दी है उसका विचार विमर्श इस लेख में किया गया है ।
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केवलज्ञानी प्रभुजी के (भगवान् महावीरस्वामी) समय में मौजूद पू. संघदास गणी महाराज 'वसुदेव हिण्डी' नामक ग्रन्थ में बतलाते हैं कि
केवइयं पुण काल आययणं, अवसिज्झिस्सई ? ततोवेण अफ्लेण । भणियं जाव इमा उसप्पिणित्ति में केवली, जिण्णाणं अंतिए सुयं ॥
इस शास्त्र वाक्य के अनुसार इस अवसर्पिणी के शेष ३९.५ हजार वर्ष बाद भी उत्सर्पिणी काल तक यह अष्टापद तीर्थ के रूप में स्थापित रहेगा ।
इसका अर्थ है कि तीर्थ का विच्छेद नहीं हुआ यह बात निःशंक है।
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यह तीर्थ भरत चक्रवर्ती की नगरी विनिता (अयोध्या) नगरी से १२ योजन दूर है १ योजन - ४ कोस । इसे मील में बदलने पर १२ x ४ x २.५ = १०८ मील हुआ | आदि कोस के बराबर २ मील मानें तो ९६ मील हुआ ।
Ashtapad Tirth, Vol. VI Ch. 40-E, Pg. 2722-2726
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Where is Ashtapad?